पटना नगर निगम सहित राज्य के तमाम निकायों के चुनाव में जिस तरह महिलाओं का दबदबा सामने आया, वह साफ संकेत है कि राजनीतिक क्षेत्र में कभी प्रतीकात्मक तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली महिलाएं वक्त के साथ किस तरह सशक्त हो रही हैं। यह प्रवृत्ति बिहार के संदर्भ में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां अभी भी पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को कभी डायन, तो कभी कोई अन्य तोहमत मढ़कर प्रताड़ित व अपमानित किया जाता है। राज्य महिला अपराधों के लिए भी बदनाम रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षो में नारी सशक्तीकरण को लेकर जो कदम उठाए गए, अब उनका प्रभाव साफ दिख रहा है। पटना नगर निगम के 75 में 49 वार्डो में महिला पार्षद निर्वाचित हुई हैं। इनमें 13 अनारक्षित वार्डो में महिला पार्षदों की विजय उल्लेखनीय घटना है। संयोग है कि पटना के महापौर का पद भी महिला के लिए आरक्षित है। यानी नगर निगम पर नारी शक्ति का वर्चस्व रहेगा। राज्य में नारी सशक्तीकरण को गति देने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी जाता है जिन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर तमाम फैसलों में महिलाओं को तरजीह दी। नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण के बाद उन्होंने शराबबंदी, पूर्ण नशामुक्ति, दहेजबंदी और बाल विवाह पर रोक जैसे चर्चित फैसले किए जिनका सीधा संबंध नारी सशक्तीकरण से है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने जीविका संगठन को प्राथमिक विद्यालयों की देखरेख तथा शराब के अवैध कारोबार पर नजर रखने जैसे अहम दायित्व सौंपे। बिहार में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी की गाथा लिखती रही हैं यद्यपि इससे पहले उनकी क्षमता पर इस तरह भरोसा नहीं किया जाता था। अब भरोसा किया गया तो वे खुद को साबित कर रही हैं। पटना नगर निगम महिलाओं पर भरोसे की एक और कसौटी साबित होगा। महिला मेयर के नेतृत्व में महिला पार्षदों की यह टीम शहर को किस दिशा में ले जाती है, यह गौर करने की बात होगी। पटना की तरह अन्य निकायों पर भी नजर रहेगी जहां विभिन्न दायित्वों के लिए महिलाएं निर्वाचित हुई हैं। नारी शक्ति का यह प्रकटीकरण राज्य के भविष्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। संपूर्ण समाज की जिम्मेदारी है कि महिलाओं को हर संभव सहयोग करके वहां पहुंचने में समर्थन दे जो उनकी वाजिब मंजिल है।सशक्त होती आधी आबादी1पटना नगर निगम सहित राज्य के तमाम निकायों के चुनाव में जिस तरह महिलाओं का दबदबा सामने आया, वह साफ संकेत है कि राजनीतिक क्षेत्र में कभी प्रतीकात्मक तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली महिलाएं वक्त के साथ किस तरह सशक्त हो रही हैं। यह प्रवृत्ति बिहार के संदर्भ में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां अभी भी पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को कभी डायन, तो कभी कोई अन्य तोहमत मढ़कर प्रताड़ित व अपमानित किया जाता है। राज्य महिला अपराधों के लिए भी बदनाम रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षो में नारी सशक्तीकरण को लेकर जो कदम उठाए गए, अब उनका प्रभाव साफ दिख रहा है। पटना नगर निगम के 75 में 49 वार्डो में महिला पार्षद निर्वाचित हुई हैं। इनमें 13 अनारक्षित वार्डो में महिला पार्षदों की विजय उल्लेखनीय घटना है। संयोग है कि पटना के महापौर का पद भी महिला के लिए आरक्षित है। यानी नगर निगम पर नारी शक्ति का वर्चस्व रहेगा। राज्य में नारी सशक्तीकरण को गति देने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी जाता है जिन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर तमाम फैसलों में महिलाओं को तरजीह दी। नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण के बाद उन्होंने शराबबंदी, पूर्ण नशामुक्ति, दहेजबंदी और बाल विवाह पर रोक जैसे चर्चित फैसले किए जिनका सीधा संबंध नारी सशक्तीकरण से है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने जीविका संगठन को प्राथमिक विद्यालयों की देखरेख तथा शराब के अवैध कारोबार पर नजर रखने जैसे अहम दायित्व सौंपे। बिहार में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी की गाथा लिखती रही हैं यद्यपि इससे पहले उनकी क्षमता पर इस तरह भरोसा नहीं किया जाता था। अब भरोसा किया गया तो वे खुद को साबित कर रही हैं। पटना नगर निगम महिलाओं पर भरोसे की एक और कसौटी साबित होगा। महिला मेयर के नेतृत्व में महिला पार्षदों की यह टीम शहर को किस दिशा में ले जाती है, यह गौर करने की बात होगी। पटना की तरह अन्य निकायों पर भी नजर रहेगी जहां विभिन्न दायित्वों के लिए महिलाएं निर्वाचित हुई हैं। नारी शक्ति का यह प्रकटीकरण राज्य के भविष्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। संपूर्ण समाज की जिम्मेदारी है कि महिलाओं को हर संभव सहयोग करके वहां पहुंचने में समर्थन दे जो उनकी वाजिब मंजिल है।

[  स्थानीय संपादकीय : बिहार ]