देर से ही सही मुख्यमंत्री ने अपने उन ‘जमीनी कार्यकर्ताओं’ की पहचान कर ली है, जिनकी थाने वाली जान-पहचान समाजवादी पार्टी की छवि पर भारी पड़ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रोफेसर राम गोपाल यादव के जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने ऐसे जमीनी कार्यकर्ताओं का वर्गीकरण किया। पहले वे जमीनी कार्यकर्ता जो जनता के बीच सीधे संवाद और सेवा के कारण पैठ रखते हैं और दूसरे वे जो जमीन के कारोबार के कारण थाने और तहसील के अफसरों में पैठ रखते हैं। मुख्यमंत्री ने पार्टी कार्यकर्ताओं का जो आकलन किया, जनता उस निष्कर्ष पर काफी पहले पहुंच चुकी है।

फिर भी इस बात की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने न केवल इस सच को स्वीकार किया वरन ऐसे कार्यकर्ताओं को सख्त नसीहत भी दी। उन्होंने दो टूक कहा कि कार्यकर्ता थाने की राजनीति में ज्यादा व्यस्त हैं। यह न पार्टी और न ही उनके हित में है। पार्टी की छवि के लिए खतरा बने कार्यकर्ताओं की पहचान और उन्हें चेतावनी यूं ही नहीं है। पंचायत चुनाव की चर्चा शुरू होने के साथ ही प्रदेश में कानून-व्यवस्था का माहौल बिगड़ने लगा है। अभी कुछ दिनों पहले सीतापुर और सुलतानपुर जिले में स्थानीय वर्चस्व की लड़ाई में खुलेआम गोलियां चलीं और कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। आगरा, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर में ¨हसा की घटनाएं भी सामने हैं।

दलीय आधार पर न लड़े जाने के बावजूद पंचायत चुनाव में हर पार्टी अपने समर्थकों को काबिज करना चाहती है। पंचायत चुनाव के बाद ही विधानसभा चुनाव की भी तैयारी जोर पकड़ लेगी। अब तक कार्यकर्ताओं के आगे ढाल बनकर खड़ी हो जानी वाली सपा अब समझ रही है कि इस समय उनके कार्यकर्ताओं की छोटी सी भी चूक बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। छवि के प्रति पार्टी और सरकार की चिंता सोमवार को मुख्य सचिव द्वारा की गई कानून-व्यवस्था की समीक्षा बैठक में भी देखने को मिली।

इस बैठक में भी जमीन संबंधी और संवेदनशील मामलों को प्राथमिकता पर निपटाने की नसीहत जिलाधिकारियों और कप्तानों को दी गई। बैठक में जिलाधिकारियों और एसएसपी के बीच आपसी तालमेल में कमी के सूत्र तलाशना महत्वपूर्ण है। बहरहाल, मंशा कुछ भी हो यदि इस कवायद से प्रदेश की कानून-व्यवस्था सुधरती है तो मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की नसीहतों का स्वागत किया जाना चाहिए। सुखद परिणामों की प्रतीक्षा के साथ।

(स्थानीय संपादकीय उत्तर प्रदेश)