प्रधानाध्यापक और प्रधान के साथ ही अन्य अभिभावकों की कमेटी को जिम्मेदारी सौंपनी होगी। ---प्रदेश सरकार और कोर्ट की मदद से जल्दी ही बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के अच्छे दिन आ सकते हैं। पाठ्यक्रम, परीक्षा और स्कूल बैग के स्तर पर ही कुछ नया करने के बारे में निर्णय लिए जा चुके हैं लेकिन, मंगलवार को इसे और गति देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट खंडपीठ ने बेसिक स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश दे दिया। कोर्ट ने इसे बच्चों के संवैधानिक अधिकारों का हनन माना है, और कहा है कि दो माह में ये सुविधाएं बच्चों को मिल जानी चाहिए। आदेश के मुताबिक टाट पट्टी की जगह बेंच, पेयजल और शौचालय मुहैया कराया जाना है। सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इतनी सुविधा जुटाने में चार हजार करोड़ खर्च करने पड़ेंगे। इसके पहले हरियाणा मॉडल का अध्ययन कर यहां के भी माध्यमिक स्कूलों में शनिवार को नो बैग डे घोषित किया जा चुका है। इस दिन पाठ्यक्रम के आधार पर व्यावहारिक ज्ञान दिया जाएगा। अगले सत्र से एनसीईआरटी के अनुसार सिलेबस लागू करने का भी फैसला हो चुका है। इन निर्णयों से लगता है कि बच्चों की सस्ती शिक्षा के अच्छे दिन शायद आ रहे हैं। बैठने को अच्छा वातावरण मिले, जरूरी नागरिक सुविधाएं मौजूद हों और प्रशिक्षित शिक्षक मनोयोग से पढ़ाएं तो ये सरकारी स्कूल निजी स्कूलों को मात दे सकते हैं। बच्चों को यूनीफार्म, स्कूल बैग और किताबें तो पहले से ही मुफ्त दी जा रही हैं। इन्हें समय पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना होगा। एमडीएम का इंतजाम भी है, बस हाईजीन का ध्यान रखते हुए बच्चों को भोजन करने का सही सलीका सिखाना होगा। कई साल पहले कंप्यूटर लगाने की कवायद हुई थी मगर स्कूलों में न बिजली के स्विच साबुत बचे और न तार। ग्रामीण इलाकों में कई ऐसे स्कूल हैं, जहां इमारत तो हैं मगर दरवाजे-खिड़कियां नहीं हैं। बेसिक स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित करना होगा। प्रधानाध्यापक और प्रधान के साथ ही अन्य अभिभावकों की कमेटी को जिम्मेदारी सौंपनी होगी। विभागीय अधिकारी नियमित निरीक्षण कर छोटी-छोटी समस्याओं को नासूर बनने से रोकें। इच्छा है, योजनाएं हैं, बजट की व्यवस्था भी हो जाएगी। करना इतना है कि ऊपर से उपजी अच्छी भावना गांव के स्कूल तक हर हाल में पहुंचे और सब इससे लाभान्वित हों।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]