बेटियों की सुरक्षा समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। बड़ी-बड़ी बातें होती हैं पर बार-बार ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो सबको चिंतन पर मजबूर कर देती हैं। हिसार में एक सनसनीखेज वारदात में विफल प्रेमी ने कैफे में सरेआम युवती की नृशंस हत्या कर दी। हत्या के बाद युवक ने स्वयं का गला घोंटने का स्वांग भी रचा। ऐसी घटनाएं सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती। बदलते परिवेश में समाज में इस तरह की विकृतियां तेजी से पनप रही हैं। तकनीक ने शायद विकास तो दिया पर रिश्तों की मर्यादा और संदेनशीलता के गुण को हर लिया। बेटियों नई सामाजिक स्थिति में मानसिक तौर पर अधिक मजबूत साबित हुई हैं। उस गति से हम शायद अपने बेटों को मजबूत नहीं बना पाए। वह अभी भी बेटी को दोस्त व सहयोगी के तौर पर स्वीकार करने से हिचकिचाता है। पौरूषवादी मानसिकता के थोथे अहंकार में बहकर वह कई बार ऐस कदम उठा लेता है जो समाज और उसके अपनों के लिए पीड़ा दायक बन जाता है। हिसार की यह घटना पहली नहीं है। बड़े शहरों की यह विकृतियां अब छोटे शहरों व कस्बों तक पांव पसार चुकी हैं। कैफे में बातचीत के दौरान युवक एकाएक हमलावर हो गया। यह साबित करता है कि वह पूरी तैयारी के साथ आया था।
इससे पूर्व कुछ ऐसा ही खूनी खेल अन्य शिक्षण संस्थानों में भी खेला जा चुका है। ऐसे में आखिर हम किस ओर जा रहे हैं। यह समय बेटियों की चिंता का तो है, उससे अधिक आवश्यकता बेटों से बात कर उन्हें नई सामाजिक स्थिति के अनुरूप ढालने की है। अभी तक हम बेटों को स्वच्छंद छोड़ देते हैं और पूरा ध्यान बेटियों पर केंद्रित कर देते हैं। बेटों को अभी भी परिवार में पहला दर्जा प्राप्त है। मां के लिए वह राजकुमार से कम नहीं। यही दर्जा उनकी सोच व मानसिकता पर इस कदर छाया रहता है कि उसके लिए न शब्द उसके अहंकार को सीधी चोट पहुंचाता है। फिर अतिरेक में ऐसा कदम उठा लेता है। बेटों को यह सिखाना होगा कि उन्हें परिवार के अलावा समाज व कार्यस्थल में बेटियों से कैसे व्यवहार किया जाए। उन्हें बराबरी का दर्जा देना होगा। परस्पर लैंगिक सम्मान और उससे विकसित सोच उसके विकास की राह को आगे बढ़ाएगी। अन्यथा ऐसी अनचाही वारदात को रोकना आसान नहीं।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]