पंजाब में फर्जी डिग्री का खेल धीरे-धीरे बहुत गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुका है। पासपोर्ट आदि के फर्जी होने के तमाम मामले तो सामने आते ही रहते हैं पर फर्जीवाड़े का यह खेल अब ऐसे क्षेत्र में भी फैल गया है, जो सीधे-सीधे लोगों के जीवन से जुड़ा है। गत दिवस मोहाली में काउंसिल ऑफ पैरामेडिकल के ऑफिस में आयुर्वेद विभाग की दबिश में ऐसे ही मामले का खुलासा हुआ। यहां फर्जी डिग्रियां बेच कर सैकड़ों मुन्नाभाई बीएएमएस डॉक्टर बना दिए गए। इस गोरखधंधे से मरीजों का जीवन तो खतरे में पड़ा ही, साथ ही सरकार को भी करीब 300 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया गया। उक्त संस्थान से बीएएमएस की फर्जी डिग्री हासिल कर कुल कितने लोग डॉक्टर बने इसकी सही संख्या का खुलासा अभी होना बाकी है, लेकिन पुलिस यह दावा कर रही है कि यह संख्या सैकड़ों में हो सकती है। यहां से फर्जी डिग्रियां हासिल वाले मुन्नाभाई अब राज्य के अलग-अलग जिलों में अपनी सेवाएं भी दे रहे हैं। जिन्होंने फर्जी तरीके से डिग्री हासिल की है, उनके पास सही ज्ञान की उम्मीद नहीं की जा सकती और यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि वह किस प्रकार का इलाज करते होंगे। हैरानी की बात यह भी है कि यह गोरखधंधा सात साल से चल रहा था, लेकिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। यह पहला मामला नहीं है जब स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में ऐसी गड़बड़ी सामने आई है। गत वर्ष मई में अबोहर की स्थानीय अदालत एक डॉक्टर को फर्जी डिग्री मामले में दो साल की सजा भी सुना चुकी है। तब पटना मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों ने अदालत में उसकी डिग्री फर्जी होने की पुष्टि की थी। ऐसे मामलों को महज फर्जी कागजात का मामला मानकर नहीं छोड़ा जा सकता है, क्योंकि यह तो जीवन के साथ खिलवाड़ है और इसकी इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती है। यही नहीं ऐसे फर्जीवाड़े से उन डॉक्टरों को लोग संदेह की नजर से देखने लगते हैं, जो वैद्य डिग्री हासिल कर मरीजों की सेवा कर रहे हैं। पुलिस को तो इस इस गोरखधंधे की गहराई से जांच करनी ही होगी। साथ ही स्वास्थ्य महकमे को भी चाहिए कि वह अपने बीच मौजूद काली भेड़ों की पहचान कर उन्हें कानून के हवाले करे। निश्चित रूप से एक बड़ा अपराध है और चाहे फर्जी डिग्री देने वाला संस्थान हो अथवा इसे पैसे देकर हासिल करने वाला मुन्नाभाई, दोनों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]