राज्य के क्रिकेट खिलाडिय़ों और खेल प्रेमियों में इस खबर से जबर्दस्त उत्साह स्वाभाविक है कि इस साल से बिहार की क्रिकेट टीम रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में हिस्सा ले सकेगी। इससे पहले सत्र 2003-04 में यहां की टीम ने आखिरी बार मैच खेला था जिसमें पराजित होकर टीम टूर्नामेंट से बाहर हो गई थी। उस टीम का हिस्सा महेंद्र सिंह धौनी भी थे। इसके बाद दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं व तकनीकी वजहों से बिहार की क्रिकेट टीम का दर्जा छिन गया जिसकी वापसी के लिए राज्य को चौदह साल इंतजार करना पड़ा। इस लंबी अवधि में खिलाडिय़ों की एक पूरी पीढ़ी 'खेल राजनीति' के झंझट में अपने सपनों को भस्म होते देखते हुए गुजर गई। कुछ खिलाड़ी झारखंड व अन्य राज्यों में खेलने लगे लेकिन अधिसंख्य के सामने कोई रास्ता नहीं था। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की पहल से एक बार फिर राज्य में क्रिकेट टीम के गठन तथा रणजी ट्रॉफी खेलने का रास्ता खुल गया है। अब राज्य सरकार, खेल प्रशासकों, खिलाडिय़ों तथा खेल प्रेमियों की जिम्मेदारी है कि राज्य में ऐसा माहौल तैयार किया जाए जिससे क्रिकेट प्रतिभाओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके बिहार का नाम रोशन करने का मौका मिले। इसके लिए जिला स्तर से ही अच्छी खेल सुविधाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि प्रतिभाओं को राज्य व देश की टीम में खेलने का अवसर मिल सके। बिहार में अन्य खेलों की भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसकी तमाम वजहें होंगी जिन्हें पीछे छोड़कर आगे बढऩा चाहिए। खेल किसी राज्य को कितना गर्व दे सकता है, हरियाणा इसका उदाहरण है। बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बशर्ते उन्हें चिन्हित करके माहौल और सुविधाएं मुहैया कराई जाएं ताकि वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। यह आवश्यक है कि राज्य सरकार इसके लिए एक मजबूत खेलनीति तैयार करे। जिला स्तर पर स्टेडियम और कोच होने चाहिए जहां क्रिकेट सहित विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। यदि सरकार ध्यान दे तो कोई वजह नहीं कि राज्य की खेल प्रतिभाएं राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार की पताका न फहरा सकें। इसके लिए एक अनिवार्य शर्त यह भी है कि खेलों को राजनीति से दूर रखा जाए। टीम के चयन में भाई-भतीजावाद कतई न हो। चयन की एकमात्र कसौटी खिलाड़ी की प्रतिभा और उसका प्रदर्शन होना चाहिए। राज्य में कम से कम एक ऐसा स्टेडियम अवश्य होना चाहिए जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैच आयोजित करने की सभी सुविधाएं उपलब्ध हों। यदि ऐसा माहौल बनाया जा सके तो जल्द ही क्रिकेट सहित कई खेलों में बिहार की धाक स्थापित की जा सकती है।
.....................................
चौदह साल बाद बिहार को क्रिकेट की मान्यता वापस मिलने की घटना को खेलों के विकास के एक नए अवसर के रूप में लिया जाना चाहिए। राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि स्कूल-कॉलेजों से लेकर राज्य स्तर तक ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करवाए ताकि खेल प्रतिभाओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का अवसर मिल सके।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]