---ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक पर्व ऐसे हैं जिनमें वृक्ष को आराध्य के रूप में पूजा जाता है। ---सवाल सिर्फ संकल्प का है और प्रदेश की 22 करोड़ आबादी यदि वास्तव में साल में सिर्फ एक बार एक पौधा लगाए तो न सिर्फ पूरे देश में सामाजिक वानिकी की तस्वीर बदल जाएगी, बल्कि हम अपने मानवीय सरोकारों और दायित्वों को पूरा करते हुए भावी पीढ़ी को विरासत में बेहतर वातावरण देने में भी सक्षम होंगे। संयोग ही है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्मदिन और पर्यावरण दिवस एक ही दिन है और इसीलिए उन्होंने 'एक पौधे का सूत्र' अपनाने का आह्वान लोगों से किया। उनकी बातों के इसलिए भी मायने हैं क्योंकि सांसद रहते हुए भी पर्यावरण चेतना के प्रति वह संवेदनशील रहते थे और अब मुख्यमंत्री के रूप में भी वह पौधरोपण के प्रति लोगों में चेतना की जरूरत महसूस करते हैं। एक पौधे का महत्व इस नजरिए से भी समझा जा सकता है कि वृक्ष के रूप में वह लगभग तीन किलो कार्बनडाइआक्साइड खींचने में समर्थ होता है। हमारे ऋषि-मुनि इसकी गंभीरता को समझते थे, इसलिए वह न सिर्फ वन क्षेत्रों में रहते थे, बल्कि उन्होंने पेड़ों को देवी-देवताओं के रूप में देखा। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक पर्व ऐसे हैं जिनमें वृक्ष को आराध्य के रूप में पूजा जाता है। इसी बहाने उत्तर प्रदेश की वन संपदा पर भी चर्चा होनी चाहिए। प्रदेश में प्रचुर वन संपदा है लेकिन उसका रकबा सिकुड़ता जा रहा है। सिर्फ नौ फीसद रकबे में ही वन क्षेत्र है जिन पर सरकारी विभागों की मिलीभगत से ही माफिया की नजरें भी लगी हुई हैं। सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले पांच जिलों में सोनभद्र, चंदौली, पीलीभीत, मीरजापुर और चित्रकूट शामिल हैं, जहां पेड़ों की अवैध कटान ने जंगल के जंगल समाप्त किए हैं। इसकी भरपाई अब तभी की जा सकती है जबकि पौधरोपण को जनांदोलन बनाया जाए। विडंबना यह है कि विश्व पर्यावरण दिवस पर हम इस आशय का संकल्प तो लेते हैं लेकिन उन्हें अमल में नहीं लाया जाता। इस बार मुख्यमंत्री ने वन क्षेत्र को पंद्रह फीसद करने का लक्ष्य तय किया है तो इसके मूल में जनसहभागिता ही है। यानी हमारी प्रतिबद्धता पर ही यह संकल्प आगे बढ़ेगा और इसके लिए सिर्फ एक पौधा लगाने की जरूरत है।

[  स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश  ]