आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों पर तनाव हावी होता जा रहा है। पैसा कमाने की होड़ व प्रतिस्पर्धा की भावना में लोग सेहत का ध्यान रखना भूलते जा रहे हैं। यह बात सही है कि स्वास्थ्य से बड़ी नेमत और कोई नहीं है। यदि धन चला जाए तो उसे दोबारा अर्जित किया जा सकता है मगर यदि सेहत खराब हो जाए तो उसे फिर हासिल करना मुश्किल है। उदास करने वाला पक्ष यह है कि हिमाचल के लोग सेहत के प्रति संजीदा नहीं हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में एक महीने में औसतन 250 से 300 लोगों को हृदयाघात हो रहा है। हर सप्ताह आठ मौतें केवल हृदयाघात के कारण होना चिंताजनक है। खानपान की बदलती आदतों व अस्त-व्यस्त जीवनशैली के कारण लोगों को रोग जकड़ रहे हैं। बीमार होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि लोग पैदल नहीं चलना चाहते। हर काम के लिए वाहन का प्रयोग करना बेहतर समझते हैं, जोकि गलत है। लंबी दूरी के लिए तो वाहनों का इस्तेमाल समझ में आता है, मगर पास-पड़ोस या थोड़ी दूर तक भी वाहन में जाना समझदारी नहीं है। कई लोग शुरुआती लक्षण दिखने पर रोग को नजरअंदाज करते हैं। सेहत के प्रति लापरवाही सबसे ज्यादा दिक्कत तब देती है, जब रोग बढ़कर पकड़ से बाहर हो जाता है। लोग शुरू में नीम हकीमों के चक्कर में फंसकर पैसा और सेहत दोनों लुटा बैठते हैं। सेहत ठीक रहे, इसके लिए जरूरी है कि तबीयत थोड़ी सी बिगड़ने पर अस्पताल पहुंचकर इलाज करवाया जाए। यदि शुरू में ही उचित इलाज करवा लिया जाए तो रोग बढ़ता नहीं है। सेहत के प्रति जागरूक होना ही बीमारी को खत्म करने की दिशा में सार्थक कदम है। इसके लिए जरूरी है कि खानपान की आदतें बदलें व जीवनशैली में बदलाव लाएं। परिस्थितियां यदि विपरीत हों तो भी तनावमुक्त रहें, जिसमें व्यायाम व सैर की अहम भूमिका हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में स्थिति यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में यदि गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज आ जाए तो उसे रेफर कर दिया जाता है क्योंकि वहां विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। ऐसे कई मामलों में उपचार मिलने से पहले ही मरीज की जान चली जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने की आवाज कई बार उठती रही है, मगर इस दिशा में जो प्रयास हुए हैं, उनमें और तेजी लाए जाने की जरूरत है। सरकारी अपेक्षा यही है कि अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती सुनिश्चित की जाए। हृदयाघात होने के बाद 65 फीसद लोगों को जीवनरक्षक दवा का न मिलना भी गंभीर मामला है। जरूरी है कि जीवनरक्षक दवाएं सभी अस्पतालों में उपलब्ध हों ताकि किसी को भी जान का खतरा न हो।

(स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश)