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सिमडेगा में पीएलएफआइ उग्रवादियों ने जिस तरह से सरेंडर का झांसा दिया वह पुलिस को समझ में नहीं आना बड़ी चूक है।
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सिमडेगा में पीएलएफआइ उग्रवादियों ने बानो थानेदार और एक जवान की जान ले ली। पुलिस जिले के बड़काटोली स्थित एक ग्रामीण के घर को घेरने पहुंची थी, सूचना थी कि वहां उग्रवादियों का एक दस्ता खाना खाने आया हुआ है। एसपी ने सूचना के आधार पर एक इंस्पेक्टर व तीन थाना प्रभारियों के नेतृत्व में 22 लोगों की एक टीम बनाई और वहां रेड मारने का आदेश दिया। पुलिस की टीम जोश में बड़काटोली पहुंची और उग्रवादियों को यह कहकर आवाज दी कि आपलोगों को घेर लिया गया है। सरेंडर करें। उग्रवादियों ने सरेंडर का नाटक किया और फिर पुलिसवालों पर ताबड़तोड़ फायङ्क्षरग झोंक दी। थाना प्रभारी समेत दो शहीद हो गए। और तो और पुलिस इतनी हतप्रभ रह गई कि वह एक भी उग्रवादी को न मार पाई और न ही उसे गिरफ्तार कर पाई। जाहिर है यहां पुलिस की तैयारी पर सवाल उठ रहे हैं और उसकी खामियां सामने आ रही हैं। उग्रवादियों ने जिस तरह से सरेंडर का झांसा दिया वह पुलिस को समझ में नहीं आना बड़ी चूक है। शायद शहीदों की जान बच जाती अगर वह बुलेटपू्रफ जैकेट पहने होते लेकिन यहां उस आदेश की अनदेखी हुई जिसमें कहा गया है कि जब भी नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन पर जाएं बुलेटप्रूफ जैकेट पहन कर जाएं। ऑपरेशन पर जाने से पहले पुलिस ने सीआरपीएफ को भी साथ नहीं लिया, जिसे उग्रवादियों के खिलाफ ऐसे मामले में लोहा लेने का ज्यादा बेहतर अनुभव है। हालांकि पुलिस को इन मामलों से विचलित नहीं होना चाहिए और उग्रवादियों को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। लेकिन, जोश में होश नहीं खोएं तो बेहतर होगा। उम्मीद है कि आगे आने वाली चुनौतियों से निपटने में पुलिस इस घटना से सीख लेगी। वहीं, डीजीपी का शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए यह कहना कि इस साल के अंत तक नक्सलियों का खात्मा कर देंगे, कर्णप्रिय लगता है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं कि डीजीपी की ओर से ऐसी बात कही गई है। पिछले वर्ष भी उन्होंने कहा था कि वर्ष 2016 तक वे प्रदेश को नक्सलियों से मुक्त कर देंगे। उन्होंने बेहतर काम किया भी लेकिन नक्सलियों से झारखंड को मुक्त करने का उनका सपना पूरा नहीं हो पाया है। लोगों को उम्मीद है कि इस बार पुलिस को कामयाबी जरूर मिलेगी। मोमेंटम झारखंड में जिस तरह से उद्योगपतियों ने राज्य में निवेश की रुचि दिखाई है वह झारखंड के बेहतर भविष्य का सपना है। यह सपना तभी पूरा होगा जब राज्य में कानून का राज होगा। लेकिन हकीकत है कि आज भी सुदूर इलाकों में नक्सलियों की इजाजत के बिना कोई निर्माण कार्य संभव नहीं। ऐसे में कंपनियां निवेश को आएं और नक्सली किसी वारदात को अंजाम दें तो इससे गलत माहौल बनेगा। नक्सलियों से निर्णायक जंग लडऩी ही होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]