देश के लगभग आधे महानगरों में सीवर प्रणाली का अभाव यदि कुछ स्पष्ट कर रहा है तो यही कि राज्य सरकारें और शहरी निकाय अपना जरूरी काम करने से इन्कार कर रहे हैं। समस्या केवल महानगरों को कारगर सीवर प्रणाली से लैस करने में बरती जा रही लापरवाही की ही नहीं, बल्कि इसकी भी है कि बारिश के मौसम में जब तमाम शहरों के सीवेज शोधन संयंत्र खराब हो जाते हैं तो उन्हें तत्काल ठीक करने के बजाय गंदगी खुले में बहा दी जाती है। यह जानबूझकर बीमारियों को निमंत्रण देने वाला कृत्य है। यह किसी अपराध से कम नहीं कि यह काम वर्षों से हो रहा है और फिर भी चेतने से इन्कार किया जा रहा है। एक आंकड़े के अनुसार देश में करीब चार हजार शहर ऐसे हैं जहां प्रभावी सीवर प्रणाली नहीं। इसका मतलब है कि शहरों को दुर्दशा में धकेला जा रहा है। स्थिति कितनी दयनीय है, यह इससे समझा जा सकता है कि देश की राजधानी दिल्ली तक में बाढ़ के पानी के साथ मलमूत्र को यमुना में बहा दिया जाता है। यह सहज ही समझा जा सकता है कि जब महानगरों में सीवर प्रणाली को लेकर ऐसी बदइंतजामी देखने को मिल रही है तो फिर छोटे शहरों में क्या होता होगा, जहां सीवेज शोधन संयंत्र या तो हैं नहीं या फिर वे पूरी क्षमता से काम नहीं करते। स्पष्ट है कि बारिश के दिनों में जलजनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ने की एक बड़ी वजह शहरी निकायों का नाकारापन है।
नि:संदेह बात केवल सीवर प्रणाली की अनदेखी की ही नहीं, बल्कि कचरे का सही तरह निस्तारण न किए जाने की भी है। दरअसल यही कारण है कि स्वच्छता अभियान अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पा रहा है। यदि शहरी निकायों के रंग-ढंग नहीं बदले तो स्मार्ट सिटी का सपना पूरा होना तो दूर रहा, शहरों में रहन-सहन के स्तर में सुधार करना भी मुश्किल है। ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों को इसकी कहीं कोई परवाह नहीं कि शहरी निकाय लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि केंद्र सरकार जवाहरलाल नेहरु नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन के तहत कई शहरी निकायों को सीवर लाइन बिछाने के लिए वित्तीय सहायता दे रही है, क्योंकि ज्यादातर राज्यों की इसमें दिलचस्पी नहीं कि यह काम तय समय में सही तरह से पूरा हो और सीवेज शोधन संयंत्र अपनी पूरी क्षमता से काम करें। इस मामले में धन के अभाव से ज्यादा बड़ी समस्या इच्छाशक्ति में कमी की है। यही कमी नदियों को साफ-सुथरा बनाने में बाधक साबित हो रही है। यदि नदी तट वाले शहरों के स्थानीय निकाय सीवर प्रणाली से लैस नहीं होते और सीवेज शोधन संयंत्रों को सही तरह नहीं चलाते तो नदियों के प्रदूषण को दूर करने का लक्ष्य भी अप्राप्य ही रहने वाला है। इसमें संदेह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की ओर से हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा तट के सौ मीटर इलाके में निर्माण कार्यों को प्रतिबंधित कर पांच सौ मीटर के दायरे में कचरा डालने पर जुर्माना लगाने के जो आदेश दिए गए हैं उससे गंगा प्रदूषण मुक्त हो जाएगी। उसे यह पता होना चाहिए कि तमाम कल-कारखाने अभी भी गंगा में गंदगी उड़ेल रहे हैं।

[ मुख्य संपादकीय ]