पहाड़ी प्रदेश हिमाचल ने अस्तित्व में आने के बाद न केवल हर क्षेत्र में विकास के आयाम छुए हैं बल्कि लोगों के जीवन को सरल बनाने की दिशा में भी सरकारें प्रयासरत रही हैं। प्रदेश में विकास के जो दावे किए जाते हैं, उनमें काफी हद तक सच्चाई भी है। प्रदेश में सरकारें किसी भी दल की रही हों, विकास उनका ध्येय रहा है। सीमित संसाधनों के बावजूद विकास में कमी नहीं छोड़ी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन व पर्यटन क्षेत्र में हिमाचल अग्रणी राज्य बनकर उभरा है। कई राज्यों में हिमाचल के विकास मॉडल को अपनाया गया है। छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल की उपलब्धियां किसी भी मायने में छोटी नहीं हैं।

लेकिन प्रदेश में एक हिमाचल ऐसा भी बसता है, जो विकास की लौ से दूर है। प्रदेश के हर गांव को विकसित की श्रेणी में लाने के लिए अब भी काफी कुछ किया जाना शेष है। किसी भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है कि लोगों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं मिलें। अगर सुविधाएं समय रहते मिल जाएं तो उनके परिणाम सुखद होते हैं। दूरदराज के लोगों को अब भी कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जीवनयापन करना पड़ रहा है। कई क्षेत्रों में सड़क सुविधा नहीं है तो कहीं परिवहन सुविधा। स्वास्थ्य व शिक्षा के मामले में भी हालात बेहतर नहीं हैं क्योंकि कोई भी वहां जाना नहीं चाहता। बिजली उत्पादन करने वाले प्रदेश में कई गांवों में अब तक बल्ब की रोशनी तक नहीं पहुंच पाई है। ऐसा ही उदाहरण शिमला जिले के चौपाल उपमंडल की जुबली पंचायत का है, जहां पीने का पानी लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता चुका है।

हालत यह है कि पानी के लिए महिलाओं को सुबह छह बजे घर से बस में जाना पड़ता है और शाम को इसी बस में लौटना पड़ता है। स्थानीय प्रशासन लोगों को घर-द्वार पेयजल सुविधा उपलब्ध नहीं करवा पाया है। दावा यही है कि बजट मिलेगा तो पानी उपलब्ध करवा देंगे। प्रदेश में इस तरह का यह इकलौता मामला नहीं है। ऐसे कई गांव चंबा, लाहुल-स्पीति, सिरमौर व कुल्लू जिलों में मिल जाएंगे, जहां विकास के दावे सही नहीं दिखते। आधुनिकता की चकाचौंध इन गांवों के लोगों तक नहीं पहुंच पाई है। जरूरत है ऐसा तंत्र विकसित करने की कि प्रदेश के हर गांव को उसके हिस्से की धूप मिल सके। विकास का पहिया इस तरह घूमे कि कोई भी क्षेत्र सुविधाओं से अछूता न रहे। जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति व सरकारी योजनाओं के समयबद्ध व सही कार्यान्वयन की।इन सबके बीच प्रदेश में एक हिमाचल ऐसा भी बसता है, जो विकास की लौ से कोसों दूर है। हर गांव को विकसित की श्रेणी में लाने के लिए काफी कुछ करना शेष है 

(स्थानीय संपादकीय हिमाचल प्रदेश)