आग की एक के बाद एक लगातार हो रही घटनाएं राज्य प्रशासन के लिए नासूर बन चुकी हैैं। महानगर में स्टीफेन कोर्ट, नंदराम मार्केट, एसएसकेएम, आमरी अस्पताल, सूर्यसेन मार्केट में अग्निकांड हुए। हर बार आग की बड़ी घटनाओं को रोकने के लिए कमेटियां बनाई गईं। कमेटियों ने विभिन्न इमारतों का दौरा भी किया। महानगर से लेकर जिलों में अस्पतालों, बहुमंजिली इमारतों, शापिंग माल, बाजार, फैक्ट्रियों और गोदामों के अग्निशमन बंदोबस्त को लेकर निर्देश भी दिए गए। इसके बावजूद पिछले दस वर्षों कई बड़े अग्निकांड हो चुके हैं। कोलकाता व पड़ोसी जिलों के लिए अब आग नासूर बन चुकी है। सोमवार की देर रात बड़ाबाजार में लगी आग को बुझाने में 17 घंटे से अधिक समय लग गया। इस अग्निकांड को लेकर एक बार फिर प्रशासन की ओर से दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं। पर, सवाल यह उठता है कि हर अग्निकांड के बाद सिर्फ दिशा निर्देश व नए नियम बनाने से आग की घटनाएं रूकेंगी? यह सही है कि सिर्फ सरकार को ही अग्निशमन बंदोबस्त को लेकर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आम लोगों को भी इसके लिए सजग होना होगा। जैसा कि हम सभी को पता है कि कोलकाता व पास-पड़ोस के जिलों के शहर असुनियोजित तरीके से बसे हैैं। हजारों की संख्या में पुरानी इमारतें हैैं जहां बिजली के तार मकड़ी के जाल की तरह बीछे हैैं। यदि एक बार आग लग जाए तो फिर उसे काबू करना बहुत ही मुश्किल होता है। पुरानी इमारतों में रबर, प्लास्टिक, चमड़ा और न जाने कितने तरह के ज्वलनशील पदार्थों के कारखाने मौजूद हैैं। संकरी गलियों के भीतर मौजूद इमारतों में यह कारोबार चल रहा है। जहां न तो अग्निशमन बंदोबस्त है और न ही पानी की कोई सुविधा। ऐसी इमारतों में जब आग लगती है तो अग्निशमन इंजनों को मौके पर पहुंचने के लिए एड़ी-चोटी एक करनी पड़ती है। स्टीफेन कोर्ट की घटना जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण था। हालांकि, यह बिल्डिंग पार्क स्ट्रीट इलाके में स्थित है, लेकिन अंदर की स्थिति ऐसी थी जिसके कारण आग लगने पर लोग बाहर नहीं निकल सके और जान बचाने के लिए बिल्डिंग से कूद पड़े थे। यह तो पुरानी इमारतों की कहानी है। हाल-फिलहाल में बनी नई इमारतों में अग्निशमन का उपयुक्त बंदोबस्त नहीं है। ऐसी स्थिति में किसे दोषी और किसे बेकसूर ठहराया जा सकता है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि ऐसा आवश्यक कदम उठाए, जिससे कि आग रूपी नासूर को जड़ से ही समाप्त कर दिया जाए।
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(हाईलाइटर::: पुरानी इमारतों में रबर, प्लास्टिक, चमड़ा और न जाने कितने तरह के ज्वलनशील पदार्थों के कारखाने मौजूद हैैं। संकरी गलियों के भीतर मौजूद इमारतों में यह कारोबार चल रहा है। )

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]