हरियाणा में दलित उत्पीड़न की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। नया विवाद करनाल के सग्गा गांव से दलितों के पलायन करने का है। शुक्र है कि लगातार दो दिन चली लंबी जद्दोजहद के बाद करनाल के गांव सग्गा के दलित अपने घरों को लौट गए। दलितों के गांव से पलायन की घटना अभी कुछ दिन पहले हिसार के मिर्चपुर गांव में हुई थी, जब साइकिल रेस में जीते एक युवक को कुछ दबंगों ने पीट दिया था। तब भी दलित पलायन कर लघु सचिवालय पहुंच गए थे। वैसे भी मिर्चपुर दलित उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है। सन 2010 में 21 अप्रैल को मिर्चपुर के वाल्मीकि परिवारों के कई घरों को जला दिया गया था, एक दिव्यांग बुजुर्ग और उसकी बेटी जलकर मर गए थे। कई घायल हो गए थे। वहां के 120 परिवार पलायन कर तब से हिसार में एक स्थानीय नेता के फार्म हाउस में रह रहे हैं। ये गांव से विस्थापित हैं, इसलिए कोर्ट के आदेश के बावजूद मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिलता। बड़ी मुश्किल से बीपीएल योजनाओं के तहत इन्हें राशन देने की फार्म हाउस के पास की एक सरकारी राशन दुकान को दी गई है। इनके पुनर्वास के लिए लगभग सात साल बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। त्रासदी तो यह है कि इस तरह की घटनाओं पर विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल को दलित विरोधी बताते हुए राजनीति चमकाने लगते हैं। समस्या की जड़ में कोई नहीं जाता और न ही कोई सौहार्द कायम करने के प्रयास करता है। मंगलवार को करनाल की घटना को लेकर विधानसभा में कांग्र्रेस ने भाजपा सरकार को दलितों की विरोधी बताया। जवाब में भाजपा के नेताओं ने उन्हें सोनीपत का गोहाना और मिर्चपुर कांड याद दिला दिया। सदन में यह चर्चा नहीं हुई कि दलित उत्पीड़न की घटनाएं क्यों हो रही हैं। इसका निदान क्या है? इस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को चिंतन करना चाहिए। यदि राजनीतिक दलों के कर्णधार इस पर गंभीरता से विचार करेंगे और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए प्रतिबद्ध हो जाएंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]