टीईटी यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा में नकल और फर्जी अभ्यर्थियों के जरिए परीक्षा देने की घटनाएं अवसादग्रस्त कर देने वाली हैं। जिन अभ्यर्थियों को अपनी मेधा, ज्ञान और क्षमता पर भरोसा नहीं है, वे शिक्षक बनकर बिहार की युवा पीढ़ी को किस दिशा में ले जाएंगे, यह सोचकर चिंता होती है। राज्य की शिक्षा और परीक्षा प्रणाली में अवमूल्यन पहले ही चिंता का सबब बना हुआ है। सरकार यह तय नहीं कर पा रही कि किसी भी वजह से जो अपात्र अभ्यर्थी शिक्षक बन गए, उनका क्या किया जाए। इस बीच नए शिक्षकों की भर्ती के लिए आयोजित टीईटी में अभ्यर्थियों द्वारा अनुचित साधनों के इस्तेमाल की सूचनाएं लज्जाजनक हैं। राज्य सरकार को इसे अत्यधिक गंभीरता से लेना चाहिए। कोशिश होनी चाहिए कि सिर्फ वही अभ्यर्थी टीईटी उत्तीर्ण कर सकें जो वास्तव में इस लायक हैं। यदि शिक्षक पदों पर अयोग्य अभ्यर्थी चयनित होते हैं तो यह युवा पीढ़ी के साथ-साथ पूरे राज्य का दुर्भाग्य होगा। स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा का स्तर ठीक न होने के कारण राज्य की देशभर में न सिर्फ बदनामी हुई बल्कि बड़ी संख्या में मैट्रिक और प्लस टू परीक्षार्थी अनुत्तीर्ण भी हुए। तमाम ऐसे विद्यालय हैं जहां एक भी परीक्षार्थी उत्तीर्ण नहीं हुआ। फिलहाल किसी भी मामले में शिक्षकों या प्रधानाचार्य के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। जिन विद्यालयों का रिजल्ट बहुत खराब रहा है, उनके शिक्षकों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। यदि ऐसे विद्यालयों और शिक्षकों पर कार्रवाई नहीं होगी तो अगले साल परीक्षा में फिर यही कहानी दोहराई जाएगी। शिक्षा और परीक्षा से जुड़ी तमाम समस्याओं का सरल समाधान यही है कि स्कूल-कॉलेजों में नियमित कक्षाएं लगें जिनमें शिक्षक पढ़ाने और छात्र पढऩे में रुचि लें। सरकार को यह भी विचार करना चाहिए कि जो शिक्षक पढ़ाने की काबिलियत नहीं रखते, उनका क्या किया जाए। इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों को सेवामुक्त करना संभव नहीं है। बेहतर होगा कि इन्हें उनके विषय का प्रशिक्षण दिलाया जाए। शिक्षकों को प्रेरित किया जाए कि वे स्वाध्याय के जरिए भी अपने ज्ञान में अभिवृद्धि करें। राज्य की शिक्षा व्यवस्था जिस हद तक पटरी से उतर चुकी है, उसे व्यवस्थित करने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने होंगे। यह अभियान जितना शीघ्र शुरू कर दिया जाए, राज्य के हित में होगा।
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शिक्षक बनने का सपना देख रहे अभ्यर्थियों द्वारा टीईटी में अनुचित साधनों का इस्तेमाल शर्मिंदा और चिंतित करने वाली घटना है। यदि ऐसे अभ्यर्थी शिक्षक पदों पर नियोजित हो गए तो वे राज्य की युवा पीढ़ी का भविष्य बर्बाद कर देंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]