देश के खाद्यान्न भंडार को भरने में पंजाब के किसानों का बहुत बड़ा योगदान है। मानसून व परिस्थितियों के अनुकूल न होने पर भी प्रदेश के किसान पैदावार कम नहीं होने देते हैं। इसलिए जब कभी वे संकट में होते हैं तो सरकार का यह फर्ज बनता है कि तत्परता दिखाते हुए उनकी हरसंभव सहायता की जाए। मौजूदा समय में खासकर मालवा इलाके के किसान परेशानी का सामना कर रहे हैं। नरमे की लाखों एकड़ फसल बर्बाद होने के बाद किसान सदमे में हैं। संगरूर के गांव संदौड़ के किसान कुलदीप सिंह ने धान की फसल की कम पैदावार से मायूस होकर कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर लिया। बठिंडा में किसान करीब दो सप्ताह से अनिश्चितकालीन धरने पर हैं। प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी किसान संघर्ष की राह पर हैं। प्रदेश में यह स्थिति कतई अच्छी नहीं है। खेत में पसीना बहाने के बाद अन्नदाता सड़कों पर रातदिन गुजारे, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश सरकार के साथ ही केंद्र सरकार को भी किसानों की चिंता करनी चाहिए। आखिर किसान कब तक मंत्रियों की कोठियों का घेराव व धरना प्रदर्शन करते रहेंगे। मंडियों में धान की आमद शुरू हो गई है, इसलिए बेहतर यही होगा कि किसानों का बठिंडा में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना खत्म करवाया जाए। इसके लिए किसान नेताओं व सरकार दोनों को पहल करनी होगी। प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसानों की फसल मंडियों में बर्बाद न होने पाए। नरमे की बर्बादी के बाद कम से कम धान की फसल की खरीद में उन्हें कोई दिक्कत न आने पाए। यह अच्छी बात है कि वीरवार को अकाली दल की कोर कमेटी की बैठक में धान खरीद का मुद्दा छाया रहा। उपमुख्यमंत्री व पार्टी अध्यक्ष ने धान के सीजन में मंडियों में किसानों को कोई परेशानी न आए इसका ध्यान रखने के निर्देश दिए। खरीद प्रबंधों की मंत्रियों व अधिकारियों को नियमित रूप से समीक्षा करने के निर्देश देना भी उचित है। मालवा में सफेद मक्खी के कारण खराब हुई नरमे की फसल का मुआवजा 5000 से बढ़ाकर 8000 रुपये प्रति एकड़ करना भी प्रशंसनीय है। इससे किसानों को राहत मिलेगी। बेहतर यह होगा कि आंदोलनरत किसान बातचीत का रास्ता अपनाएं और सरकार भी उनकी मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार करे।

[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]