राज्य में पिछले साल सितंबर माह में आई भीषण बाढ़ के कारण हुई तबाही के बाद टूटे तटबंधों और पानी के मुहानों की मरम्मत न हो पाना गहन चिंता का विषय है। बरसात को आने में अभी थोड़ा समय रह गया है और लोगों को यह डर सता रहा है कि कहीं टूटे बांधों और तटबंधों से बरसात का पानी फिर से कहर न बरपाए। सबसे अधिक खतरा जम्मू के साथ लगते निक्की तवी क्षेत्र के लोगों को है, क्योंकि यह इलाके तवी नदी की दो धाराओं के बीच का क्षेत्र है और यहां के लोग दोनों ओर से तवी नदी से घिरे हुए हैं। इस सीमावर्ती क्षेत्र में करीब 45 गांव हैं और यहां कुल आबादी दो लाख से अधिक है।

इतना ही नहीं, उनकी परेशानी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इन गांवों को जोड़ने वाला एक मात्र पुल भी गत वर्ष बाढ़ में बह गया था और आठ माह बीत जाने के बाद भी पुल के बहे हिस्से का निर्माण नहीं हो पाया है। कमोवेश यही स्थिति विजयपुर के बरसाती नाले बसंतर का भी है, जिसके तटबंधों की मरम्मत नहीं हो पाई है। गत वर्ष बरसात के पानी के साथ बहकर आई रेत मिट्टी खेतों में बिछ गई, जिससे हजारों एकड़ भूमि में लगी रबी की फसल बरबाद होकर रह गई थी।

अफसोस की बात यह है कि अभी तक सरकार किसानों के हालात को नजरअंदाज कर रही है। उनकी दिक्कतों के प्रति सरकारी उदासीनता साफ झलक रही है। अगर समय पर टूटे तटबंधों की मरम्मत नहीं हुई तो आगामी बरसात में भारी तबाही का मंजर फिर देखने को मिल सकता है। बरसात में किसान धान की फसल को प्राथमिकता से उगाते हैं, क्योंकि उनकी सालभर की कमाई मुख्य फसल धान पर ही निर्भर है। निक्की तवी क्षेत्र के लोग भी धान की फसल को उगाने में मेहनत करते हैं।

अगर तटबंधों की मरम्मत और उनकी सुरक्षा को लेकर कोई काम नहीं हुआ तो निसंदेह किसान भी फसल को उगाने से गुरेज करेंगे। बारिशों में पहले ही रबी की फसल से किसान हाथ धो बैठे हैं और लाखों एकड़ में उगी गेहूं की फसल का मुआवजा भी किसानों को नहीं मिला है। ऊपर से उनमें असुरक्षा की भावना ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बरसात से पहले अगर मरम्मत कार्य नहीं हुआ तो वे फिर से आंदोलन के मार्ग को अपनाएंगे।

(स्थानीय संपादकीय जम्मू-कश्मीर)