बिलासपुर के एक किसान ने पेड़ से फंदा लगाकर जान दे दी। मरने वाले ने ट्रैक्टर के लिए चार लाख लोन लिया था, पर ट्रैक्टर बिना काम के था। एक स्थानीय व्यक्ति से 22 हजार रुपये लिए थे। चुकता न कर पाने के कारण उक्त व्यक्ति एक दिन पहले ही ट्रैक्टर ले गया था। यह मौत बिना काम के ट्रैक्टर वालों की हालत बयां करती है। ऐसा नहीं है कि इस तरह के सारे लोग एकदम से आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं। बेरोजगारी की मार ङोल रहे इस किसान ने कुछ अच्छा होने की उम्मीद में ही ट्रैक्टर खरीदा होगा। घर में पैसे नहीं थे या कम थे तो लोन लिया। उनको भी आस रही होगी कि आज नहीं तो कल उनके दिन फिरेंगे। बच्चों की पढ़ाई का खर्च बढ़ रहा था।

परिवार की दूसरी जिम्मेदारियां अलग से थीं। जिस ट्रैक्टर के लिए लोन लिया था, उससे आय नहीं हो रही थी। ब्याज बढ़ रहा था। प्रदेश में ट्रैक्टर खरीदने वाले अधिकतर लोग रेत-बजरी ढोकर पैसा कमाने की मंशा पाले रखते हैं। क्रशर वालों का दबदबा बढ़ने से पहले ऐसा होता भी रहा कि ट्रैक्टर वाले रॉयल्टी देकर अपनी दिहाड़ी निकाल लेते थे। ये लोग परिवार का खर्च निकालने के साथ-साथ लोन की किश्तें भी भरते रहते हैं। कुछ ने तो एक से दो ट्रैक्टर भी कर लिए। काफी सारे लोग खेती के नाम पर ट्रैक्टर खरीदते हैं। पर प्रदेश में खेती होती ही कितने दिन है। अधिकतर की रोजी-रोटी खड्डों से ही निकलती रही है। खनन पर रोक है। इस सख्ती के बाद ही ट्रैक्टर वाले जमीन पर आए हैं। कांगड़ा जिला सहित कुछ अन्य जगह ट्रैक्टर वाले सरकार और प्रशासन के पास अपने लिए काम मांगने आते रहे हैं। कुछ जगह तो ट्रैक्टरों की चाबियां तक प्रशासन के हवाले करने की कोशिश की थी। इन लोगों के लिए नीति अब तक नहीं बन पाई।

यहां पुलिस की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में आती है। घोड़े, ट्रैक्टर और ट्रक वालों के रेत-बजरी उठाने पर चालान होते हैं। खड्डों में क्रशर मालिक दिन-रात जेसीबी चला रहे हैं, पुलिस वाले उन पर बहुत कम कार्रवाई करते हैं। ट्रैक्टर वाले मुश्किल से दो-तीन फुट रेत-बजरी उठाते हैं। उधर जेसीबी का पंजा 20 से 25 फुट गहराई तक मार करता है। जरूरत यह है कि ट्रैक्टर मालिकों के लिए नीति बने। ताकि कल को कोई दूसरा ट्रैक्टर मालिक इस तरह का कदम उठाने से बचाया जा सके।

    [ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश]