सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर एक बार फिर जोर दिया है। सरकार यह चाहती है कि निजी स्कूलों और अस्पतालों पर लोगों की निर्भरता कम हो।

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा दिल्ली विधानसभा में पेश बजट वास्तव में सरकार की दूरदर्शिता को परिलक्षित करता है। इसका कारण यह है कि पहली बार किसी सरकार ने आउटकम बजट की बात की है। यानी सरकार यह चाहती है जनता से मिले कर का हर एक पैसा सही मद में खर्च हो। यह अच्छी बात है क्योंकि अभी तक विभाग योजना तैयार कर सरकार के पास भेज देते थे और फिर सरकार बजट आवंटित कर देती थी। इसके बाद विभाग उस पैसे को खर्च तो कर देते थे लेकिन यह रिपोर्ट नहीं देते थे कि उससे लोगों को क्या फायदा हुआ। ऐसा मामला दिल्ली परिवहन निगम में ज्यादा देखने को मिलता था क्योंकि बसें उस रूट पर चला दी जाती थीं जहां सवारियों की संख्या कम होती थी और बाद में अधिकारी घाटा दिखा देते थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार के इस पहल के बाद अधिकारियों की इस तरह की कारगुजारियों पर अंकुश लगेगा। यह इसलिए भी जरूरी था कि अधिकारी मनमाना रवैया अपनाते थे और जरूरतमंद हमेशा सरकार को ही दोषी मानते थे।
इस बजट की अच्छी बात यह है कि सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर एक बार फिर जोर दिया है। साफ है कि सरकार यह चाहती है कि दिल्ली में निजी स्कूलों और अस्पतालों पर लोगों की निर्भरता कम हो। यह जरूरी भी है क्योंकि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना सरकार का धर्म है और यह उसे सुनिश्चित भी करना चाहिए। इसके अलावा अब तक सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन पहली कक्षा में होता था यानी चार साल की उम्र तक बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी मां-बाप की होती थी और वे मजबूरी में नजदीकी प्ले स्कूल पर निर्भर रहने को मजबूर थे। इस बार सरकार ने अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन सेंटर और प्री-प्राइमरी कक्षाएं शुरू करने की योजना बनाकर इस दुविधा को भी दूर करने की कोशिश की है। सरकार को यह भी चाहिए कि वह मुफ्त जांच और ऑपरेशन की सुविधा भी लोगों को जल्द से जल्द मुहैया कराए ताकि किसी की मौत पैसे की कमी से न हो सके।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]