पटना के फुलवारीशरीफ में पांच साल की मासूम बबिता की मौत ने राज्य के आपदा प्रबंधन तंत्र की पोल खोल दी है। अगर यह मान भी लिया जाए कि बच्ची की मौत बोरवेल के बाद गड्ढे में भरी बालू के वजन को न सहने के कारण हुई है तो भी एक बड़ा सवाल यह उठता है कि ऐसे हादसों के राहत कार्य के लिए जिम्मेदार एसडीआरएफ (स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फोर्स) की क्या तैयारी रहती है? इस घटना में उसकी कोई फुर्ती-चुस्ती नहीं दिखाई दी, बल्कि टीम को घटनास्थल पर पहुंचने में काफी देर भी लग गई। ऊपर से पहुंचने के बाद बचाव कार्य शुरू करने के लिए दो घंटे तक अफसर की अनुमति का इंतजार किया गया।

यह स्थिति वैसी ही है जैसी किसी दुर्घटना या चौक-चौराहे पर मारपीट में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने पर होती है। जो व्यक्ति घायल की मदद करने को उसे अस्पताल लेकर पहुंचता है, इलाज से पहले डॉक्टर उससे ही तमाम सवाल पूछने लगते हैं, पहले पुलिस में सूचना देने की बात कहकर इलाज में टालमटोल की जाती है। मासूम बबिता के मामले में जब उसकी मां लाडली को गड्ढे से निकालने के लिए हाथों से बालू हटाने लगी थी तब भी आपदा टीम को उसपर तरस नहीं आया। टीम में शामिल लोग भी परिवार वाले होंगे, उनके भी अपने बच्चे होंगे ही। भगवान न करे उनपर कभी कोई ऐसी आपदा आए। बोरवेल में गिरकर बच्ची की मौत के मामले में पुलिस का भी कम दोष नहीं है, ट्रक, बालू लदे ट्रैक्टर और पटरी दुकानदारों से वसूली करने को तो वह मोटरसाइकिल और जीप से खूब गश्त लगाती है, परंतु उसके पास खाली प्लॉटों पर बोरिंग के बाद छोड़ दिए जाने वाले जानलेवा गड्ढे को ढकने के लिए लोगों को टोकने की फुर्सत नहीं है। बिल्डरों द्वारा गली-मोहल्लों में फ्लैट निर्माण कराते वक्त गहरी खोदाई कराने पर भी पुलिस मौन रहती है।

कई मामलों में ऐसा होता है कि खोदाई के बाद सालों निर्माण नहीं किया जाता और लॉट पर पानी भर जाता है। बच्चे ऐसी जगहों पर खेलने लगते हैं, बबिता की मौत भी खेलने के दौरान बालू भरे बोरवेल पर चढ़ने से हुई है। 1बिहार एक ऐसा राज्य है जो कई तरह की आपदा से घिरा है। भूकंप के मुहाने पर होने के साथ ही सूबे का पूर्वी और उत्तर अंचल हर साल बाढ़रूपी आपदा ङोलता है। नेपाल से सूबे में प्रवेश करने वाली नदियां तबाही मचाती हैं, कोसी तो स्थायी शोक बन चुकी है। इस साल भी उसका उफनाना शुरू हो चुका है। कुल मिलाकर आपदा प्रबंधन तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है और यह राज्य सरकार की विशेष रुचि लिए बिना संभव नहीं है। बोरवेल जैसे हादसे भी लगातार बढ़ रहे हैं, इसलिए सरकार को एसडीआरएफ को संसाधनों से लैस करना चाहिए।

बबिता के मामले में जो बदइंतजामी दिखाई दी है, भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न हो, पर इसके लिए बड़े उपाय तो करने ही होंगे। मासूम के मामले में एक सच यह सामने आया है कि आपदा टीम के लोग एक्सपर्ट ही नहीं थे। घटनास्थल पर कोई रस्सी नीचे फेंक रहा था तो कोई सीढ़ी मंगवा रहा था। बच्ची को गड्ढे में गिरे दो घंटे हो गए थे, कोई आगे से खोदाई की बात कर रहा था तो कोई कहीं और से। जेसीबी चलाने वाला ऐसा था कि मशीन के दबाव से बोरवेल में ऊपर से और बालू गिरने लगी। राज्य सरकार से आपदा प्रबंधन तंत्र की मजबूती की उम्मीद के साथ ईश्वर से यही प्रार्थना है कि फिर कहीं ऐसा हादसा न हो।

(स्थानीय संपादकीय बिहार)