भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस का दावा तभी सही साबित हो सकता है जब घोटालेबाजों को कड़ा दंड दिया जाए। सरकार यदि कोई ऐसी नजीर पेश करती है तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है।
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उत्तराखंड में कई बड़े घोटाले होने के बावजूद अभी तक इनकी कोई ठोस जांच न हो पाना चिंता का विषय है। प्रदेश में कई सरकारें आई और गईं लेकिन किसी ने इन घोटालों से परदा उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह बात दीगर है कि इन घोटालों के नाम पर राजनीतिक दल एक-दूसरे को डराते-धमकाते जरूर नजर आए। प्रदेश में इस बार भाजपा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस और शुचिता के नाम पर चुनाव जीतकर सत्ता में आई है। ऐसे में भाजपा के सामने अपने इन वादों को पूरा करने की चुनौती भी है। बावजूद इसके जिस तरह से तकरीबन 350 करोड़ के राष्ट्रीय राजमार्ग भूमि अधिग्रहण के मुआवजा घोटाले पर सीबीआइ जांच को लेकर कार्यवाही चल रही है, उससे जनता के जेहन में कई सवाल उठ रहे हैं। केंद्र की ओर से हाल ही में प्रदेश सरकार को एक पत्र भेजकर मामले की प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी गई है। इससे ऐसा लगता है कि प्रदेश सरकार की ओर से अपूर्ण दस्तावेज केंद्र को भेजे गए थे। इससे कहीं न कहीं शासन की कार्यशैली पर सवाल भी उठ रहे हैं। सवाल इसी घोटाले का नहीं है। दरअसल, इन तमाम घोटालों पर कार्यवाही का मकसद इनमें लिप्त सफेदपोश और अफसरों को दंड देना भी है। दरअसल प्रदेश में कोई भी घोटाला इन अफसरों के बिना नहीं हो सकता। सरकारें आती हैं और जाती हैं लेकिन अफसर अपनी जगह बरकरार रहते हैं। ज्यादा से ज्यादा इनके विभागों में बदलाव किया जाता है। जाहिर है ऐसे में ईमानदार अफसर हाशिये पर ही रहते हैं। सरकार को इस विषय में गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है। सरकार को समझना होगा कि जनता ऐसा सिस्टम चाहती है जहां भ्रष्टाचार न हो। सरकार को यदि इस मंशा के साथ काम करना है तो घोटालेबाजों के खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे। सरकार को समझना होगा कि आरोप-प्रत्यारोप से राजनीति तो चल सकती है लेकिन सिस्टम नहीं। इसके लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए घोटालों पर कड़े कदम उठाने होंगे, तभी सरकार के गुड गर्वनेंस और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की मुहिम आगे बढ़ सकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]