(हाईलाइटर-चूंकि पश्चिम बंगाल में विभिन्न भाषा, धर्म और जाति के लोग रहते हैं, इसलिए यहां उनके अलग-अलग शिक्षण संस्थान भी देखने को मिल मिल जाएंगे)
लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म और भाषा के आधार पर संबंधित समुदायों को अपना शिक्षण संस्थान खोलने और चलाने का अधिकार प्राप्त है। इसी आधार पर सभी राज्यों में अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान खोलने की छूट है। यहां अल्पसंख्यक से मतलब केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं है। पश्चिम बंगाल में हिंदी भाषी जिस तरह अल्पसंख्यक हैं उसी तरह पंजाबी भी अल्पसंख्यक हैं। इस दृष्टि से बिहार और उत्तर प्रदेश में बंगाली अल्पसंख्यक कहें जाएंगे और उन्हें भी संविधान के तहत अल्पसंख्यकों का जो अधिकार मिला है उसका वह उपभोग कर सकते हैं। चूंकि पश्चिम बंगाल में विभिन्न भाषा, धर्म और जाति के लोग रहते हैं, इसलिए यहां उनके अलग-अलग शिक्षण संस्थान भी देखने को मिल मिल जाएंगे। धर्म और भाषा के नाम पर राज्य में संचालित ऐसे ही कुछ खास 100 निजी स्कूलों को सरकार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आरोप है कि आरएसएस संचालित ऐसे स्कूलों में बच्चों को धार्मिक असहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जाता है।
शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा है कि राज्य के कुछ ऐसे स्कूलों में बच्चों को धार्मिक असहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की शिकायतें मिली है। राज्य के किसी भी निजी स्कूल में असहिष्णुता को बढ़ावा देनेवाली धार्मिक गतिविधियां सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी। इस तरह के निजी स्कूल जिस बोर्ड से संबद्ध हैं उसे संबंधित बोर्ड का पाठ्यक्रम लागू करना होगा और बच्चों को उसी पाठ्यक्रम के तहत शिक्षा देनी होगी।
शिक्षा मंत्री का यह भी मानना कि कुछ शिक्षण संस्थाएं सेंट्रल बोर्ड से मान्यता प्राप्त कर लेती हैं और राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेती है। जरूरत पडऩे पर ऐसे स्कूलों की जांच पड़ताल कर उनका अनुमोदन रद करने के लिए सरकार कड़ा कदम उठाएगी।
सरकार कोई गंभीर कारण दिखा कर इस तरह के निजी स्कूलों को बंद करने के लिए कदम उठा ही सकती है लेकिन यह नहीं भूलना होगा कि ये शिक्षण संस्थान संविधान में प्राप्त अधिकार के तहत ही राज्य में खुले हैं और चल भी रहे हैं। इसलिए ऐसे शिक्षण संस्थानों पर सीधी कार्रवाई संभव नहीं है। जब सरकार किसी एक धर्म विशेष का स्कूल बंद कराती है तो दूसरे समुदाय के स्कूल और मदरसे चलने पर सवाल उठेंगे। आरएसएस के एक प्रवक्ता ने जब कहा है कि राज्य में साढ़े दस हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसों पर सरकार चुप क्यों है, तो यह तर्कसंगत ही लगता है।

[  स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]