कश्मीर के हालात बिगाड़ने पर तुले आतंकी किस तरह बौखलाए हुए हैं, इसे ही बयान कर रही है शोेपियां में लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या। महज 23 साल के फैयाज की तब हत्या की गई जब वह पहली बार छुट्टी लेकर एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने गए थे। इस निहत्थे युवा सैन्य अफसर की अपहरण के बाद हत्या आतंकियों की कायरता के साथ-साथ इसका भी प्रमाण है कि वे किस तरह कश्मीरियों की ही जान के दुश्मन बन गए हैं। शायद आतंकियों की नजर में यह फैयाज का गुनाह था कि वह बुरहान वानी की तरह से बर्बादी के पर्याय आतंक के रास्ते पर जाने के बजाय देश की सेवा कर रहा था। फैयाज की हत्या के बाद उन कश्मीरियों की आंखें खुल जाएं तो बेहतर जो पाकिस्तान परस्त जिहादी ताकतों और आजादी का राग अलाप रहे तत्वों के बहकावे में अपने साथ-साथ कश्मीर का भी भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। आजादी की बेतुकी मांग और सुरक्षा बलों पर पागलपन भरी पत्थरबाजी कश्मीर को कहीं नहीं ले जाएगी। आम कश्मीरियों को यह भी समझ आ जाना चाहिए कि पाकिस्तान अपने फायदे के लिए उनका दोहन करने में लगा हुआ है। यदि वह कश्मीर की आजादी के पक्ष में है तो अपने कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से को आजाद क्यों नहीं करता? इस पर हैरत नहीं कि फैयाज की हत्या के पीछे पाकिस्तान की कठपुतली बने आतंकियों का हाथ देखा जा रहा है। ये आतंकी यह सहन करने के लिए तैयार नहीं कि उनके बीच का कोई युवा भारत के प्रति अपनी निष्ठा जताए। उन्हें यह भी रास नहीं आ रहा कि तमाम दुष्प्रचार के बावजूद कश्मीरी युवा पुलिस, सुरक्षा बलों और सेना में भर्ती के लिए उमड़ रहे हैं।
फैयाज की हत्या यह भी बताती है कि आतंक और अलगाव के रास्ते को पसंद न करने वाले आम कश्मीरियों को बंदूक के बल पर आतंकित किया जा रहा है। यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि फैयाज और उनके परिवार के लोगों जैसे शांतिप्रिय कश्मीरियों की राह कितनी कठिन हो गई है। यह सामान्य बात नहीं कि फैयाज के घर वालों ने पुलिस को उसके अपहरण की सूचना इस भय से नहीं दी कि कहीं आतंकी नाराज न हो जाएं। जितना जरूरी यह है कि फैयाज के हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा न जाए उतनी ही यह भी कि आम कश्मीरियों तक पहुंच बनाई जाए और उन्हें यह संदेश दिया जाए कि आतंकवादियों और उनके समर्थकों की दाल गलने वाली नहीं है। इस पर हर्ज नहीं कि भारत सरकार महबूबा मुफ्ती सरकार के आग्र्रह के बावजूद आतंकियों के हमदर्द हुर्रियत और ऐसे ही अन्य अराजक संगठनों से बातचीत के लिए तैयार नहीं, लेकिन आखिर आम कश्मीरियों से संपर्क-संवाद करने में क्या बाधा है? क्या वर्तमान में यह ज्यादा जरूरी नहीं कि अलगाववादियों को अलग-थलग करने के साथ ही उन्हें नियंत्रित भी किया जाए? भारत सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि आज कश्मीर के राजनीतिक दल अलगाववादियों के खिलाफ मुंह खोलने में शर्माते से हैं। शायद ही कोई कश्मीरी नेता हो जो सड़कों पर उतर कर उत्पात मचाने वालों के खिलाफ कुछ कहने के लिए तैयार हो। दरअसल इसी कारण अलगाव और आतंक की भाषा बोलने वालों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है।

[ मुख्य संपादकीय ]