कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का अंतरिम फैसला भारत को एक बड़ी राहत देने के साथ ही पाकिस्तान को बेनकाब करने वाला भी है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था के रूप में इस न्यायालय ने अपने अंतरिम फैसले में जिस तरह यह कहा कि अंतिम फैसले तक जाधव के खिलाफ कुछ नहीं होना चाहिए उससे यही स्पष्ट हुआ कि भारत के इस नागरिक को फांसी की सजा देने पर आमादा दिख रहा पाकिस्तान देश-दुनिया के समक्ष खोखली दलीलें दे रहा था। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने यह भी साफ किया कि उसे इस मामले को सुनने का अधिकार है और भारत को जाधव से संपर्क का अवसर यानी काउंसलर एक्सेस दिया जाना चाहिए था। इसका सीधा मतलब है कि पाकिस्तान की यह दलील थोथी साबित हुई कि यह मामला वियना संधि के उल्लंघन के दायरे में नहीं आता, क्योंकि जाधव कथित तौर पर जासूसी करने के साथ ही आतंकवाद फैलाने में लगे हुए थे। भारत और जाधव के पक्ष में दिए गए फैसले की सबसे खास बात यह है कि 11 न्यायाधीशों की पीठ ने सर्व सम्मति से फैसला सुनाया। इसका अर्थ है कि किसी भी जज को पाकिस्तान की दलीलों में दम नहीं दिखा। इस पर हैरत नहीं कि पाकिस्तान को यह फैसला रास नहीं आया और वह उसे स्वीकार करने में आनाकानी कर रहा है, लेकिन वह अमेरिका या चीन की तरह मनमानी करने की स्थिति में नहीं है। वह इस फैसले को ठुकरा कर अपनी मुसीबत बढ़ाने का ही काम करेगा। ध्यान रहे कि चीन को छोड़कर शेष दुनिया की नजर में वह पहले ही एक गैर जिम्मेदार और आतंकवाद का पोषक देश है।
पाकिस्तान चाहे जैसी डींगें क्यों न हांके उसके लिए अपनी बची-खुची अंतरराष्ट्रीय छवि की चिंता न करना आसान नहीं होगा। उसे इसका भी अहसास होना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला न मानने की सूरत में उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। यदि पाकिस्तान जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला नहीं मानता तो फिर सिंधु नदी जल विवाद सरीखे उससे जुड़े अन्य मामलों में भारत के पास भी ऐसा करने का अधिकार होगा। चूंकि अंतरराष्ट्रीय अदालत का जाधव की फांसी सजा रोकने संबंधी फैसला अंतरिम है इसलिए भारत राहत की सांस लेने के बावजूद चैन की सांस नहीं ले सकता। मोदी सरकार ने जैसी तेजी और आक्रामकता जाधव को बचाने में दिखाई वैसी ही उसे पाकिस्तान पर नए सिरे से दबाव बनाने के लिए दिखानी चाहिए। यह सही समय है जब दुनिया को नए सिरे से बताया जाए कि पाकिस्तान किस तरह भारत के लिए खतरा बने अपने यहां के आतंकियों को पाल-पोस रहा है और इसी कारण मुंबई हमले की साजिश रचने वाले वहां खुले घूम रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान से पूछा जाना चाहिए कि यदि जाधव को जासूस बताकर कबीलाई पंचायत सरीखी सैन्य अदालत के हवाले किया जा सकता है तो मुंबई हमले के गुनहगारों को क्यों नहीं किया जा सका? चूंकि नवाज शरीफ को नीचा दिखाने और साथ ही भारत से तनाव बढ़ाने के लिए जाधव को फंसाने का काम पाकिस्तानी सेना ने किया इसलिए भारत सरकार की ओर से ऐसा कुछ किया जाना चाहिए जिससे उसकी सेहत पर सीधा असर पड़े।

[ मुख्य संपादकीय ]