महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में राज्य में पीडीपी और भाजपा की गठबंधन सरकार के बागडोर संभालने से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रणाली का आगाज हो गया। नई सरकार के अस्तित्व में आने से लोगों को अब लगने लगा है कि उनके रुके हुए कार्यों का समाधान निकलेगा। राज्यपाल शासन के दौरान हालांकि कई अहम परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थीं, लेकिन लोगों के छोटे मसले का समाधान क्षेत्र के चुने हुए प्रतिनिधियों के पास ही होता है। लोगों की अधिकारियों से सीधी पहुंच न होने के कारण उनकी समस्याओं का हल निकलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। राज्य में सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। ऐसे में युवाओं को नई सरकार से काफी उम्मीदें दिख रही हैं। नई सरकार के समक्ष भी ढेरों चुनौतियां हैं। शपथ ग्रहण समारोह के बाद मंत्रियों के साथ बैठक में महबूबा ने सख्त तेवरों में साफ कह दिया है कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। काम करोगे तो ठीक है वर्ना दूसरा मौका नहीं मिलेगा। युवा महिला मुख्यमंत्री के इस कथनी से स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने दिवंगत पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद के नक्शे कदम पर चलेंगी। भ्रष्टाचार के अलावा राज्य में बेरोजगारी और विकास की समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। महबूबा के लिए यह कांटों भरा ताज होगा। स्थायी नियुक्तियों की मांग को लेकर पीएचई विभाग में कार्यरत हजारों दिहाड़ीदार कर्मचारी पहले से ही आंदोलन कर रहे हैं और मंगलवार से बिजली विभाग के दिहाड़ीदार कर्मियों ने भी हड़ताल का आह्वान किया है। नेताओं को भी चाहिए कि वे अपने विधानसभा क्षेत्रों में जाएं और लोगों की समस्याओं का निदान करवाएं। इस समय राशन वितरण की समस्या से लोगों को जूझना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में राशन के साथ पानी, बिजली की समस्या भी सिर उठाने लगी है। अगले माह सचिवालय श्रीनगर स्थानांतरित हो जाएंगे। इससे पहले क्षेत्र के प्रतिनिधियों को जनता के बीच जाना होगा, जिससे कोई भी व्यक्तिखुद को उपेक्षित न समझे। नई सरकार से लोगों को विकास और प्रगति की उम्मीदें हैं, जिस पर खरा उतरना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]