कन्या संरक्षण और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान में सरकार जिस तरह हर दिन नई कवायद कर रही है, उससे भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत मिलने की पूरी संभावना है। उसके अभियान को हर तरफ से सहयोग भी मिलने लगा है। अमेरिका ने प्रदेश सरकार की इस मुहिम को हर संभव सहयोग देने की पेशकश की है। सरकारी क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र भी उसमें कदमताल करता दिखाई देने लगा है। भिवानी में एक निजी नर्सिंग होम में वहां पैदा होने वाली हर बच्ची के लिए बैंक खाता खोलने की शुरुआत की गई है। उसने 160 कन्याओं के लिए सुकन्या शगुन योजना के तहत पासबुक अभिभावकों को सौंपी जिसमें प्रत्येक खाते में 1100 रुपये जमा करवाए गए। बच्चियों की जन्मतिथि व स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े भी फार्म में भरकर दिए जा रहे हैं। नर्सिंग होम की मुहिम से बच्चों के जन्म पंजीकरण का लक्ष्य भी पूरा होने में मदद मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्य निजी अस्पताल व संस्थाएं इसका अनुसरण करके कन्या संरक्षण मुहिम को आंदोलन का रूप देने में सहायक सिद्ध होंगी। सरकार की नई कवायद का भी असर होने की पूरी उम्मीद है। पंचायत चुनाव में मतदान करने वाले हर वोटर के हाथ पर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की मुहर लगाई जाएगी। इसके अलावा हरियाणा दिवस को बेटी दिवस के रूप में मनाने की तैयारी है। ग्राम पंचायतों में बेटी बचाने के लिए हस्ताक्षर बोर्ड लगाए जाएंगे। तात्पर्य यह है कि सरकार की सक्रियता में अब कोई कमी नहीं दिखाई देगी। सबसे सुखद बिंदु यह है कि सरकार के साथ निजी क्षेत्र ने भी कन्या संरक्षण की आवश्यकता को संजीदगी से महसूस किया है। अब जरूरत है इन प्रयासों में बेहतर समन्वय एवं सतत निगरानी की। सभी मानते हैं कि बदतर लिंग अनुपात का दाग सामान्य प्रयासों से नहीं धुलने वाला। कन्या के प्रति आमजन की मानसिकता बदले बिना वास्तविक लक्ष्य की प्राप्ति सर्वथा असंभव है। केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं में कन्या के लिए धन की कमी नहीं, प्रचार-प्रसार भी व्यापक पैमाने पर हो रहा है लेकिन आधारभूत स्तर पर जिस जागरूकता की आवश्यकता है, उसके लिए लीक से हटकर प्रयास किए बिना काम नहीं चलने वाला। समाज का आदर्श रूप तभी बन सकता है जब स्त्री-पुरुष का अनुपात समान हो। भ्रूण हत्या रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग सख्ती दिखाए, चिकित्सा व्यवसाय की पवित्रता भंग करने वालों को और कड़ा दंड देने का प्रावधान किया जाए। जरूरत है समग्र प्रयासों की।

[स्थानीय संपादकीय: हरियाणा]