सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया यह प्रावधान बेहद सकारात्मक एवं राष्ट्रहित में है कि तय मानकों पर कर्मचारियों की परफारमेंस का मूल्यांकन किया जाएगा। जो इस कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे, उन्हें वार्षिक वेतन वृद्धि नहीं मिलेगी। बेशक हर समझदार एवं कर्मठ व्यक्ति इस प्रावधान का स्वागत करेगा। आवश्यक है कि ऐसी अनुकरणीय व्यवस्था को यथाशीघ्र बिहार में भी लागू किया जाए ताकि यहां की राजकीय सेवाओं में पेशेवर सोच विकसित की जा सके। अधिकारी-कर्मचारी यह भरोसा कर सकें कि बेहतरीन परफारमेंस ही उनके व्यक्तिगत विकास का जरिया है। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के बाद सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं का लाभ निकट भविष्य में बिहार की भी राज्य सेवाओं में मिलना तय है। यह उचित समय होगा, जब इन सेवाओं में पारदर्शी एप्रेजल प्रणाली लागू की जाए तथा इसके निष्कर्षों को कर्मचारियों की प्रोन्नति, वेतनवृद्धि आदि का आधार बनाया जाए। सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं के जरिए कर्मचारियों को अकल्पनीय ढाई गुना वेतन बढ़ोतरी हासिल हुई है। इससे कर्मचारियों के जीवन स्तर में बड़ा सुधार होना तय है लेकिन यही उचित समय है, जब कर्मचारियों के दायित्व और जवाबदेही की कसौटियां भी सख्त की जाएं। केंद्र सरकार के कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ देने में सालाना करीब एक लाख करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ बढ़ेगा। इस क्रम में राज्यों के खजानों पर भी भार बढ़ेगा। जाहिर है कि यह धनराशि सार्वजनिक विकास मद से काटकर निकाली जाएगी। ऐसे में कर्मचारियों को स्वत:स्फूर्त संकल्प लेना चाहिए कि देश अपने सार्वजनिक विकास की कीमत पर उन्हें जो व्यक्तिगत लाभ दे रहा है, उसके बदले वे अपनी परफारमेंस से देश-प्रदेश के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

केंद्रीय कर्मचारियों को लाभ मिलने के बाद राज्य कर्मचारी इस लाभ के लिए मांग तेज करेंगे। बिहार सरकार को इसके लिए तैयारी करनी पड़ेगी क्योंकि सरकार के खजाने की मौजूदा हालत देखते हुए यह नया वित्तीय बोझ सहना आसान नहीं होगा। शराबबंदी के बाद राज्य सरकार के राजस्व में चार से छह हजार करोड़ सालाना गिरावट तय है। इस बीच बड़ी संख्या में शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियां भी प्रस्तावित हैं। सरकार पर इनके वेतन का भी बोझ आएगा। इसके साथ सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करना राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। सरकार को राजस्व के ऐसे नए स्रोत तलाशने होंगे जिनसे पहले ही महंगाई की मार से कराह रहे आम आदमी पर नए करों की मार न पड़े। यदि सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए आम उपभोक्ता वस्तुओं पर कर बढ़ाती है तो यह घोर निराशाजनक, अलोकप्रिय एवं अनपेक्षित कदम होगा। यदि कर बढ़ाना बाध्यकारी है तो इसे लक्जरी सामग्री तक सीमित रखा जाना चाहिए। शराब पर तो खैर पाबंदी लग गई, लेकिन अन्य नशीले पदार्थों, मसलन गुटखा, सिगरेट आदि पर कर बढ़ाना बेहतर कदम होगा। इस मामले में राज्य सरकार को बहुत सोच-समझकर कदम बढ़ाने होंगे ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]