ऐसा कई बार होता है कि सरकार वायदे तो कर देती है लेकिन उस पर या तो अमल नहीं होता है या फिर इसमें बहुत देर हो जाती है। गुरदासपुर के दीनानगर में 27 जुलाई को हुए आतंकी हमले में बस ड्राइवर नानक चंद ने करीब 70 यात्रियों की जान बचाई थी। आतंकियों द्वारा फायङ्क्षरग के बीच उन्होंने साहस व बुद्धिमानी का परिचय देते हुए बस को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था। नानक चंद ने यदि बस नहीं भगाई होती तो पता नहीं कितने लोग आतंकियों की गोली का शिकार हो जाते। तीनों आतंकियों के पास कितने घातक हथियार थे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिन भर चली मुठभेड़ के बाद उन्हें ढेर करने में सुरक्षा बलों को सफलता मिली थी। इस मुठभेड़ में सात जानें गई थीं जिनमें एक एसपी सहित चार पुलिसकर्मी भी शहीद हो गए थे। कुछ दिनों के बाद जिले के दौरे पर गए मुख्यमंत्री ने बस ड्राइवर नानक चंद को स्थायी करने और तीन लाख रुपये इनाम में देने की घोषणा की थी। पंद्रह अगस्त को नानक चंद को पचास हजार रुपये दिए गए और नौकरी पक्की किए जाने के बारे में अभी तक कोई पत्र जारी नहीं किया जा सका है। मुख्यमंत्री की ओर से की गई घोषणा के मुताबिक बस कंडक्टर वीरेन्द्र कुमार को भी पक्का किया जाना था। वे भी सरकार के पत्र का इंतजार कर रहे हैं। दोनों पंजाब रोडवेज में ठेके पर कार्यरत हैं। सरकार की ओर से की जा रही देरी से वे निराश हैं। प्रदेश सरकार को यह जरूर देखना चाहिए कि अदम्य साहस का परिचय देने वाले के लिए की गई घोषणा समय पर पूरी हो और घोषणा के मुताबिक पैसे दिए जाएं। पंजाब रोडवेज पठानकोट डिपो के जनरल मैनेजर मानते भी हैं कि नानक चंद ने वास्तव में बहुत बड़ा कार्य किया है। एक सप्ताह बाद ही सारा केस सरकार को भेज दिया गया था। यदि ऐसा है तो संबंधित विभाग के आलाधिकारियों और प्रदेश सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्परता दिखानी चाहिए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि संकट की घड़ी में बहादुरी का काम करने वालों का हौसला न टूटे और भविष्य में लोग उनसे प्रेरणा लेते रहें।

[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]