जहां एक के बाद एक पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के नेता और पार्टी के जन प्रतिनिधि सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं वहीं पार्टी के एक पुराने नेता हुमायूं कबीर की घर वापसी से कांग्रेस को थोड़ी राहत मिली है। कबीर ने सोमवार को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में औपचारिक रूप से कांग्रेस का झंडा थाम कर अधीर चौधरी के नेतृत्व में आस्था जतायी। हालांकि हुमायूं कबीर भी ममता बनर्जी की पहली सरकार में मंत्री बनने के लालच में कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल में शामिल हुए थे। तृणमूल में शामिल होते ही ममता बनर्जी ने उन्हें मंत्री बनाया भी लेकिन बाद में विधानसभा उप चुनाव में हारने के बाद उनका मंत्री पद चला गया। मुर्शिदाबाद के रेजीनगर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक रहे हुमायूं कबीर को तृणमूल ने कुछ खास मकसद से मंत्री पद का लालच देकर तोड़ा था। मुर्शिदाबाद जिला कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है और इसका श्रेय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी को जाता है। अधीर ने ही कबीर को राजनीति में आगे बढ़ाया था। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी राज्य से चुनाव लडऩे की जरूरत पड़ी तो उन्होंने मुर्शिदाबाद को ही चुना। मुर्शिदाबाद के जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र से प्रणव मुखर्जी ने कांग्रेस के टिकट पर दो बार चुनाव जीता। इसी से मुर्शिदाबाद में कांग्रेस के मजबूत गढ़ का अंदाजा लगाया जा सकता है। 2011 में ममता बनर्जी के परिवर्तन की आंधी में भी मुर्शिदाबाद में कांग्रेस का गढ़ अक्षुण्ण रहा। बाद में यहां कांग्रेस को कमजोर करने और अधीर चौधरी को झटका देने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने सेंधमारी शुरू कर दी। तृणमूल की सेंधमारी का ही नतीजा रहा कि 2001 में मुर्शिदाबाद के रेजीनगर विधानासभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद हुमायंू कबीर पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे। दलबदल करने का उन्हें तत्काल लाभ मिला। लेकिन ज्यादा दिनों तक वह मंत्री पद पर नहीं रह सके।
मंत्री पद चले जाने के बाद तृणमूल कांग्रेस ने कबीर को मुर्शिदाबाद में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी। अधीर के रहते वह वहां तृणमूल के लिए कोई जगह नहीं बना सके। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व से उनकी दूरियां बढऩे लगी। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व और यहां तक कि ममता बनर्जी पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने ममता बनर्जी के सांसद भतीजा व युवा तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष अभिषेक बनर्जी की भी आलोचना की। बाद में पार्टी विरोधी गतिविधियां चलाने के आरोप में उन्हें तृणमूल कांग्रेस से निकाल दिया गया। उसके बाद कबीर ने अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेताओं के साथ संपर्क बढ़ाना तेज किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी के साथ उनकी सुलह हो गई और अंतत: उनकी घरवापसी हुई। विधायक मानस भुइयां के पार्टी छोड़ कर तृणमूल में जाने के बाद कबीर की घरवापसी से कांग्रेस का उत्साहित होना स्वाभाविक है।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]