सरकार को शराब की बिक्री पर नियंत्रण करने के साथ ही युवाओं को नशे से बचाने के लिए कदम उठाने होंगे। दुकानों के साथ ही बार व रेस्टोरेंट में शराब परोसने के नियमों में भी सख्ती करने होगी।
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प्रदेश में शराब की दुकानों के लगातार हो रहे विरोध के बीच सरकार का केवल छह घंटे शराब की दुकानों को खुला रखने का फैसला बढ़ते जनाक्रोश को कम करने की दिशा में उठाया गया कदम नजर आ रहा है। इससे जनता को कितनी राहत मिलेगी, यह इस फैसले के धरातल पर लागू होने के बाद ही पता चल पाएगा। इस फैसले पर थोड़ा संशय इसलिए भी है क्योंकि शराब प्रदेश में राजस्व का सबसे बड़ा जरिया है। प्रदेश के कुल राजस्व की तकरीबन 20 फीसद आय अकेले आबकारी से होती है। जाहिर है कि शराब को नियंत्रित तरीके से बेचने पर इसकी आय में खासी कमी आएगी। सरकार का दावा है कि राजस्व बढ़ाने के लिए आय के अन्य स्रोत विकसित किए जाएंगे ताकि आने वाले सालों में शराब से मिलने वाले राजस्व की निर्भरता कम हो सके। यह बात अलग है कि इसके लिए सरकार अभी तक कोई पुख्ता योजना जनता के सामने नहीं रख पाई है। उम्मीद है कि नई आबकारी नीति में इसके लिए कुछ प्रावधान किए जाएंगे। उत्तराखंड में शराबबंदी को लेकर फिलहाल अपने-अपने तर्क दिए जा रहे हैं। सरकार भी पूर्ण शराबबंदी के पक्ष में नजर नहीं आ रही है। सरकार इसे सीधे पर्यटन व उद्योग से जोड़कर सामने रख रही है। इसके लिए उदाहरण हरियाणा एवं बिहार का दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि बिहार में शराबबंदी के चलते बड़ी कंपनियों की बैठकें अब उत्तर प्रदेश और झारखंड के पांच सितारा होटलों में हो रही हैं। उद्योग भी धीरे-धीरे इन प्रदेशों से बाहर की ओर रुख कर रहे हैं। इन सबके बीच सरकार को इस बात को भी देखना होगा कि प्रदेश में शराबबंदी के स्वर यूं ही नहीं उठ रहे हैं। युवाओं और छात्रों में तेजी से बढ़ रही नशे की लत और शराब के सेवन से बर्बाद हो रहे परिवारों की पीड़ा इसमें झलक रही है। जब तक युवाओं और नशे की चंगुल में फंसे लोगों को इससे छुटकारा दिलाने के उपाय नहीं किए जाते, तब तक सरकारी की इस तरह की कवायद परवान नहीं चढ़ सकती। सरकार को इसके लिए सख्त नियम बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए छात्रों को शराब बेचने पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही दंडात्मक प्रावधान किए जाने की जरूरत है। सरकार को इसके लिए जनजागरूकता अभियान भी चलाना होगा। अवैध शराब पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे तभी सरकार के दावों पर जनता विश्वास कर सकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]