राज्य सरकार के शिक्षा मंत्री द्वारा दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं समय पर करवाने का फैसला सही है। नि:संदेह इससे विद्यार्थियों का समय बर्बाद नहीं होगा और उन्हें व्यावसायिक कॉलेजों में आगे प्रवेश के लिए तैयारी करने को भी पर्याप्त समय मिलेगा। यह बात किसी से नहीं छुपी है कि इस समय कश्मीर की हालत कैसी है। पिछले डेढ़ महीने से बंद व प्रदर्शनों के कारण पूरे कश्मीर संभाग में स्कूल बंद पड़े हुए हैं और कोई भी शैक्षिक गतिविधि नहीं हो रही है। विद्यार्थियों की पढ़ाई पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है। सोचनीय विषय यह है कि बंद का आव्हान करने वाले अलगाववादियों को इसकी जरा भी चिंता नहीं है। कश्मीर में ढाई दशक के आतंकवाद के कारण वहां पर पहले से ही युवाओं को काफी कुछ भुगतना पड़ा है। आए दिन होने वाले बंद व प्रदर्शनों के चलते स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय हर संस्थान भी बंद रहता है। इससे वहां पर पडऩे वाले विद्यार्थी प्रतिस्पर्धा में भी पिछड़ते चले गए। अच्छी बात यह रही कि कश्मीर के आम आदमी और विद्यार्थी को इसका अहसास होने लगा और उन्होंने शांति स्थापित करने के लिए सरकार को अपना सहयोग देना शुरू किया। यह इसी का परिणाम था कि बंद व प्रदर्शनों का दौर देखने वाले कश्मीर पर अलगाववादियों की पकड़ कमजोर हो गई और शांति बहाली के साथ ही शैक्षिक गतिविधियों में भी तेजी आई। कश्मीर के विद्यार्थी कश्मीर प्रशासनिक सेवाओं, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं तक में परचम फहराने लगे और पूरे देश के रोल मॉडल भी बनने लगे। यह बात अलगाववादियों को रास नहीं आई और उन्होंने अब हिजबुल के आतंकी कमांडर की मौत के बाद फिर से कश्मीर में आग लगाने की साजिश रची। यह बात कश्मीर की आम जनता व युवाओं को समझनी होगी। डेढ़ महीने से बंद पड़ी शैक्षिक गतिविधियों का सबसे अधिक नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ रहा है जिसकी भरपाई करना बहुत मुश्किल होगा। विगत दिवस राज्य के शिक्षा मंत्री ने परीक्षाओं को लेकर जो गंभीरता दिखाई, उससे यह साफ है कि वह विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर ंिचंतित हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे अलगाववादियों के बहकावे में न आएं और शांति स्थापित करने के लिए सरकार को अपना पूरा सहयोग दें ताकि शैक्षिक गतिविधियां बहाल हो सकें।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]