झारखंड का पर्यावरण संकट तेजी से बढ़ रहा है। एशिया के सघन वन क्षेत्रों में शुमार सारंडा से लेकर पलामू के बेतला तक लगातार वनों का क्षरण हो रहा है। मानव आबादी का अतिक्रमण तेजी से बढ़ रहा है नतीजतन सुरक्षित वन्य आश्रयणी से जंगली जानवर बाहर आ रहे हैं। वनों में भोजन और पानी की कमी उन्हें आबादी की तरफ आने को विवश करती है। हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के पहले इसपर चिंता तो जताई जाती है लेकिन स्थापित नियमों और मानकों का सख्ती से पालन करने में अधिकारी हिचकते हैं। प्रदूषण नियंत्रण के तमाम कानून हैं लेकिन कारखानों का प्रदूषण सीधे नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। इस वजह से नदियों का अस्तित्व भी खतरे में है। राज्य की लगभग तमाम नदियां गर्मी आने के पहले सूख जाती हैं। कई नदियों के उद्गम स्थल पर भी अतिक्रमण हो चुका है। जंगल, नदी, नाले के साथ खिलवाड़ पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है। यही वजह है कि इन दिनों पूरा प्रदेश भीषण गर्मी से तप रहा है। कभी अविभाजित बिहार की ग्र्रीष्मकालीन राजधानी रही रांची में तापमान का पारा 40 डिग्री पार कर चुका है। पहले ऐसे हालात नहीं थे। भूगर्भ जल का श्रोत भी तेजी से नीचे खिसक रहा है। पेयजल के लिए हाहाकार मचा है। डीप बोङ्क्षरग लगातार हो रहा है और प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगती। पेड़ काटकर कंक्रीट के जंगल तैयार किए जा रहे हैं। शहर का दायरा लगातार बढ़ रहा है और इसका सबसे ज्यादा नुकसान पर्यावरण को उठाना पड़ रहा है। चंद रुपये की लालच में कई स्थानों पर तालाबों पर अपार्टमेंट बन चुके हैं। छोटे नाले और जल श्रोत समाप्त हो चुके हैं। नदियों के प्रदूषण का आलम ऐसा है कि राज्य की जीवन रेखा कही जाने वाली स्वर्णरेखा, दामोदर, कोयल आदि नदियों का आक्सीजन स्तर खतरनाक रूप धारण कर चुका है। इसका प्रभाव जलीय पौधों और जलचरों पर भी पड़ रहा है। कुल मिलाकर स्थिति भयावह है और पर्यावरण के प्रति क्रूरता इसी प्रकार बरकरार रही तो वह दिन दूर नहीं जब मनुष्यों को प्रकृति का कोपभाजन बनना पड़ेगा। अनावृष्टि और अतिवृष्टि इसी का प्रतिफल है। राज्य सरकार को चाहिए कि स्थापित नियम-कानूनों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए। मध्य प्रदेश, असम की तरह यहां भी नदियों को संरक्षित करने का अभियान चलाया जाना चाहिए। नदियों, पठारों के आसपास कुछ किलोमीटर के दायरे में निर्माण कार्य प्रतिबंधित करना आवश्यक है।
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जंगल, नदी, नाले के साथ खिलवाड़ पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है। झारखंड भीषण गर्मी से तप रहा है। यह सचेत होने का समय है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]