झारखंड की सबसे बड़ी ताकत यहां की प्राकृतिक संपदा है। खनिज, जंगल या फिर पहाड़ की बात करें। राज्य में जिस तरह से प्राकृतिक संपदाओं का दोहन हो रहा है और अधिकारी इसकी अनदेखी कर रहे हैं उससे इतना तो सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में यहां की आबादी को बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। शहरी क्षेत्रों से पहले ही पेड़-पौधे दूर हो रहे हैं, जंगलों पर भी मुसीबत आ गई है। चतरा में जिस प्रकार कोयला ट्रांसपोर्टरों ने जंगल को काटकर सड़क बना ली वह इसकी बानगी भर है। ऐसे ही सैकड़ों मामले अनदेखी के शिकार बन रहे हैं। पत्थरों का अवैध उत्खनन, कोयला समेत तमाम खनिजों की चोरी और प्राकृतिक संपदाओं का दोहन रोकने के लिए बनी व्यवस्था मूकदर्शक बनी हुई है।
कोयले से कमाई करनेवाले ठेकेदारों और ट्रांसपोर्टरों का मनोबल किस कदर बढ़ा हुआ है वह चतरा में दिखता है। इस गिरोह ने मिलकर लेंबुआ से बालूमाथ थाना क्षेत्र के गोनिया तक जंगल को उजाड़ कर वन भूमि पर 10 किलोमीटर की नई कच्ची सड़क का निर्माण कर डाला है। सूचना और शिकायतें सभी तक पहुंची ही होंगी लेकिन पूछने पर कोई जानकारी नहीं होने की बात सभी करते हैं। वन विभाग का भी यही हाल है। वहां भी कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक को ऐसे मामलों की जानकारी नहीं होना आश्चर्यजनक है। राज्य सरकार का काम हो अथवा बड़े केंद्रीय उद्योगों के लिए वन भूमि की आवश्यकता हो, जमीन पाना असंभव सा है। सरकारी विभागों को भी तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर जो नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं, उनके लिए कहीं कोई कठिनाई नहीं। यही कारण है कि चतरा में जंगल काटने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। एक-दो नहीं, 10 किमी की लंबाई में पेड़ काटे गए हैं। वन कर्मियों को पता नहीं हो यह मानना संभव नहीं है। फिर भी जानकारी नहीं होने के आधार पर अधिकारी कार्रवाई टालते जा रहे हैं। इसके पूर्व चतरा के सिमरिया में जंगल काटकर सड़क बनाने का मामला प्रकाश में आया था। उस मामले में भी कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई जिससे ऐसा करने वालों का मनोबल बढ़ा है।
ट्रांसपोर्टर आखिर ऐसा करते क्यों हैं? दरअसल, इसके पीछे का मुख्य कारण है नो-इंट्री से मुक्तिपाते हुए 24 घंटे आराम से कोयले की ढुलाई करना। मुख्य मार्गों से ऐसा करना इसलिए संभव नहीं कि वहां पुलिस की नो-इंट्री होती है और प्रशासन की नजर भी। वन को काटकर नई सड़क से ढुलाई रात-दिन हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक सड़क के लिए करीब 350 हरे-भरे पेड़ों को काटा गया है। इतने पेड़ों के इस स्वरूप में आने में वर्षों लग जाते हैं। इस प्रकार इसकी भरपाई कतई संभव नहीं है। टंडवा स्थित सीसीएल की आम्रपाली और मगध कोल परियोजना से निकलने वाले कोयले को चंदवा रेलवे साइङ्क्षडग तक पहुंचाने के लिए यह नया रास्ता बनाया गया है। यदि अराजक तत्वों पर रोक नहीं लगी तो वन संपदा का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस मामले की संवेदनशीलता को समझ कर गंभीरता से लेगी और जिम्मेदार लोगों तथा लापरवाह अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]