पश्चिम बंगाल के सत्ता रूपी सिंहासन पर कौन विराजमान होगा, कौन विधानसभा की सीढ़ी चढ़ेंगे। यह सब बंगाल के 6 करोड़ से अधिक वोटरों ने आखिरी चरण के मतदान के साथ ईवीएम में कैद कर दिया है। तीन माह लंबा चुनावी महासमर समाप्त हो चुका है और सभी को अब 19 मई का इंतजार है। इस बार का विधानसभा चुनाव कई मायनों में स्मरणीय रहा। मतदान की घोषणा और नामांकन शुरू होने के साथ ही नारद स्टिंग और समाप्ति से पहले सिंडिकेट स्टिंग सामने आया। चुनाव आयोग ने धारा 144 लागू कर मतदान कराया। सत्तारूढ़ दल के कई नेता नजरबंद हुए। कई नेताओं व पीठासीन अधिकारी के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज हुई। 60 से अधिक पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर आयोग की गाज गिरी, जिसमें कोलकाता पुलिस के आयुक्त राजीव कुमार को पद से हटाना ऐतिहासिक रहा। क्योंकि, कोलकाता पुलिस के इतिहास में पहली बार हुआ था कि मतदान से पहले किसी आइपीएस को आयुक्त के पद से हटाया गया। छह चरणों में सात दिन मतदान हुए। पहले चरण में दो दिन मतदान कराया गया। बावजूद इसके ङ्क्षहसक घटनाएं हुई। 21 मार्च को तीसरे चरण के मतदान में बूथ के निकट ही माकपा के पोलिंग एजेंट की नृशंस हत्या कर दी गई थी। गुड़ बतासा, घुघनी व मूढ़ी (लइया), ढाक बजाने जैसे बयान आने के बाद सियासी तापमान चढ़ता गया। वहीं गर्मी ने भी नया रिकार्ड बनाया। इन सबके बीच चुनावी महासंग्र्राम थम चुका है। पर, चुनावी खुरेंजी अब भी जारी है। हर दिन हमले हो रहे हैं। बम व गोलियां चल रही हैं। इसके आगामी कुछ दिनों तक जारी रहने के पूरे-पूरे आसार नजर आ रहे हैं। पर, यहां एक बड़ा सवाल यह है कि चुनाव प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुका है। अब सिर्फ मतगणना बाकी है। पर, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता व समर्थक खूनी खुरेंजी पर आमदा क्यों हैं? चुनाव में हार जीत तो होती ही है। पर, चुनाव के बाद भी ङ्क्षहसा जारी रहने से एक बात साफ हो जाता है कि ङ्क्षहसा करने वाले तत्व भयभीत हैं और वह आतंक फैला कर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। दूसरी ओर सियासी दल अब मतदान प्रतिशत और पार्टी प्रत्याशियों को मिलने वाले वोट के गुणा-भाग में जुट गए हैं। क्योंकि, 14 दिन बाद नतीजे आएंगे। इससे पहले अपने-अपने स्तर पर आश्वस्त होने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा? 29 मई से पहले बंगाल में नई सरकार गठित होना है। क्योंकि, 15वीं विधानसभा की मियाद 29 मई को समाप्त हो जाएगी। उससे पहले नई सरकार को गठित होना जरूरी है। 294 सीटों वाली बंगाल विधानसभा के भीतर का रंग क्या दिखाता है इसकी उत्सुकता सभी को है। क्योंकि, 2011 में तृणमूल ने 184 व कांग्र्रेस ने 42 सीटें जीत कर विस का रंग ही बदल दिया था।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]