पटना हाईकोर्ट ने छह सरकारी मेडिकल अस्पतालों के परिसर में अतिक्रमण की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी है। ये मामले ऐसे हैं जो निम्न अदालतों में लंबित हैं। केस-मुकदमे की वजह से अतिक्रमण हटाना कठिन हो गया है। इसके पहले पटना हाईकोर्ट ने राजधानी पटना से अतिक्रमण हटाने के लिए नई व्यवस्था दी थी। पटना नगर निगम से एक महीने में अतिक्रमण वाले स्थानों को चिह्नित कर इनकी सूची तैयार करने को कहा था। इसकी रिपोर्ट भी हाईकोर्ट में पेश की जाएगी। पटना विश्वविद्यालय के हॉस्टल में अवैध कब्जा और अतिक्रमण का मामला भी हाईकोर्ट तक पहुंचा है। आखिरकार हाईकोर्ट को इतने ब्योरे क्यों मांगने पड़ रहे? नगर निकाय या स्थानीय प्रशासन का एक सामान्य सा रूटीन काम करने के लिए हाईकोर्ट को आदेश देना पड़ रहा। अतिक्रमण का मुद्दा वर्षों पुराना है। अतिक्रमण हटाने को लेकर सरकार की व्यवस्था से परेशान होने के बाद लोग हाईकोर्ट से हस्तक्षेप की मांग करते हैं। हाईकोर्ट इस संबंध में पहले भी कई आदेश दे चुका है। लोगों को भरोसा है कि अब सिर्फ हाईकोर्ट ही इसमें कुछ कर सकता। यह अस्पतालों, विश्वविद्यालयों और नगर निकायों के स्थानीय प्रशासकों के वश की बात नहीं। पुलिस और जिला प्रशासन भी इसे गंभीरता से नहीं लेता। दूसरी ओर शहर में अतिक्रमण बढ़ता ही जा रहा। हर मोड़ पर बाजार सजे रहते हैं। राजधानी की सड़कों पर फुटपाथ तो है, लेकिन उनका इस्तेमाल पैदल चलने के लिए कम और दुकानें लगाने के लिए ज्यादा हो रहा है। पटना जंक्शन, जिसे शानदार जंक्शन बनाने की योजना की खबरें अक्सर छपती रहती हैं, के आसपास जितने भी फुटपाथ हैं, सब अतिक्रमण के शिकार हैं। जिला मुख्यालयों में भी ऐसे ही दृश्य दिखते हैं। जिलों में तो ट्रैफिक भी बेतरतीब है। किसी भी जिला मुख्यालय के मुख्य हिस्से से वाहन लेकर निकलना मुश्किल भरा काम है। शहरवासी फुटपाथों पर कब्जे से परेशान हैं। इस मामले में सवाल सरकारी मशीनरी पर है। पटना शहर में विधानसभा और राजभवन के आसपास की सड़कें हैं, जहां अतिक्रमण नहीं दिखता। सुंदर फुटपाथ और सुंदर लैंडस्केप दिखता है। बेली रोड के उस पार बसे मंत्रियों के बंगलों के आमने-सामने शानदार सड़कें दिखती हैं। बेली रोड के इस पार दूसरा ही शहर है। दखल की हुई सड़कें, गंदे फुटपाथ, चारों तरफ अवैध दुकानें और बेतरतीब ट्रैफिक। एक ही नगर निकाय अधिकारी और एक ही पुलिस अधिकारी कैसे दो इलाकों को लेकर दो तरह के भाव रखते हैं। किसी जिला मुख्यालय में एसपी और डीएम के बंगले के सामने अतिक्रमण नहीं दिखता। फिर किसी डॉक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी, शिक्षक या अन्य आम आदमी के मकान के सामने अतिक्रमण क्यों रहेगा? सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।
----

एक ही शहर में कई सुंदर दिखते इलाके हैं, क्योंकि वे वीआइपी क्षेत्र हैं। वही शहर थोड़ी दूर पर गंदा, अतिक्रमण का शिकार और बेतरतीब दिखता है, क्योंकि वहां आम जन रहते हैं। शहर को सुंदर और व्यवस्थित बनाने में वीआइपी कल्चर क्यों है?

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]