पंजाब मंत्रिमंडल ने गत दिवस पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण को 33 फीसद से बढ़ाकर 50 फीसद कर दिया है। निस्संदेह यह फैसला महिलाओं को प्रोत्साहित और सशक्त करने वाला है तथा इसकी तारीफ होनी चाहिए। एक ऐसा प्रदेश जो कभी कुड़ीमार के रूप में कुख्यात रहा हो, उस प्रदेश में ऐसी पहल निस्संदेह एक सुखद बदलाव का संकेत देने वाली है। समाज में यह चर्चा तो होती रहती है कि महिलाओं को भी पुरुषों के समान अधिकार मिलने चाहिएं, लेकिन वास्तविकता इससे इतर है। यह ठीक है कि पहले के मुकाबले महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन अब भी उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। बात सिर्फ पंचायतों की ही नहीं है, अपितु हर विभाग में यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई भी देता है। सभी राजनीतिक दल महिलाओं को समान अधिकार देने, आरक्षण बढ़ाने की बातें तो करते हैं, लेकिन चुनाव में कितनी महिलाओं को टिकट देते हैं यह सर्वविदित है। कदाचित इसीलिए देश की विधानसभाएं हों अथवा संसद.. दोनों जगह गिनी-चुनी महिला जनप्रतिनिधि ही नजर आती हैं। ऐसा तब हो रहा है, जबकि लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाएं, बेटियां अपनी क्षमता का लोहा मनवा रही हैं। शिक्षा जैसे क्षेत्र में तो बेटियां लगातार बेटों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए समान अवसर उपलब्ध करवाया जाए। इससे निश्चित रूप से महिलाओं को प्रेरणा मिलेगी और इसका लाभ अंततोगत्वा समाज व प्रदेश को ही मिलेगा। यह अच्छी बात है कि पंजाब सरकार ने महिलाओं को और आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक कदम उठाया है, परंतु महज आरक्षण बढ़ा देने भर से स्थिति में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है। यह सर्वविदित है कि आज भी बड़ी संख्या में ऐसी पंचायतें हैं जहां चुनी तो महिलाएं गई हैं, लेकिन उनका सारा काम उनके पति ही देखते हैं। इसलिए आवश्यकता इन हालात को बदलने की भी है। सरकार को ऐसे कदम भी उठाने होंगे, जिससे महिलाओं को हकीकत में उनका हक प्राप्त हो सके। महिलाएं निर्भीक होकर घरों से बाहर निकल सकें।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]