नशामुक्ति पर किरकिरी
पंजाब सरकार एक ओर राज्य को नशामुक्त बनाने के लिए कई प्रयास करने के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर वह नशामुक्ति केंद्रों को फंड जारी करने में हीलाहवाली व लेटलतीफी भी करती है।
पंजाब सरकार एक ओर राज्य को नशामुक्त बनाने के लिए कई प्रयास करने के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर वह नशामुक्ति केंद्रों को फंड जारी करने में हीलाहवाली व लेटलतीफी भी करती है। इसी लेटलतीफी के लिए पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने गत दिवस उसे कड़ी लताड़ लगाई। नशामुक्ति केंद्रों को समय पर फंड न मिल पाने के मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी की कि आखिर लोगों का पैसा उनकी भलाई पर खर्च करने में इतनी बाधाएं क्यों खड़ी की गई हैं और फाइलें एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस क्यों घूमती रहती हैं। हाईकोर्ट का यह कहना सरकारी व्यवस्था की पोल खोलता है कि आखिर कितने चरणों की प्रक्रिया के बाद फाइल केंद्र को भेजी जाती है। यह कदाचित गंभीर मामला है और अदालत की टिप्पणी से स्पष्ट है कि वह इसे लेकर चिंतित है। हालांकि ऐसा सिर्फ इसी मामले में नहीं है अपितु हर तरह के सरकारी कार्यों की प्रक्रिया कमोबेश ऐसी ही है, जिसमें किसी कार्य को करवाने के लिए लोगों को कई-कई बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इससे मुक्ति पाने के प्रयास समय-समय पर किए जाते रहे हैं, परंतु दुर्भाग्यवश इस व्यवस्था पर लगी जंग की परत इतनी मोटी हो चुकी है कि उस पर किसी भी प्रयास का कोई खास असर नहीं होता है। नशामुक्ति के मामले में यही व्यवस्था सरकार की किरकिरी का कारण बन रही है, क्योंकि आए दिन किसी न किसी राजनीतिक, सामाजिक मंच से पंजाब में नशे का मुद्दा उछलता रहता है और सरकार की ओर से यह दावा किया जाता है कि प्रदेश को नशामुक्त बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु यदि प्रदेश के नशामुक्ति केंद्रों की स्थिति देखी जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह अदालत की चिंताओं पर गंभीरता से विचार करे और ऐसी व्यवस्था का निर्माण करे, जिसमें न सिर्फ नशामुक्ति केंद्रों को समय पर फंड उपलब्ध हो सके अपितु सरकारी कार्यालयों में भी आम जनता आसानी से अपने कार्य करवा सके।
[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]