बड़े अंतर से जीत कर 2012 में आई उत्तर प्रदेश की सपा सरकार को चार साल होने को हैं। अगले साल इस समय विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही होगी। इसलिए शुक्रवार को आने वाला प्रदेश का बजट पूरी तरह से चुनावी बजट होना तय है। सरकार अपनी प्राथमिकताएं खुद जानती है, किस सेक्टर में उसे ज्यादा ध्यान देना है, किस वर्ग को तवज्जो देने पर वोटों का प्रतिशत बढ़ेगा और कौन सी परियोजनाएं ऐसी हैं जिन्हें दिसंबर तक हर हाल में चालू किया जाना है। 30 योजनाओं को लेकर सरकार का अपना विकास एजेंडा है, उनको तो मजबूत किया ही जाएगा। गुरुवार को चालू वर्ष के लिए अनुपूरक अनुदान मांगें पारित करवाई गई। इससे जाहिर है कि बिजली को यह सरकार सर्वोच्च स्थान पर रख रही है। हालांकि 'उदय' योजना के तहत सरकार की बाध्यता है कि वह यह राशि बिजली सेक्टर को उपलब्ध कराए, लेकिन दो-तीन वर्षो में सरकार की ओर से बिजली उत्पादन और वितरण को काफी महत्व दिया गया है। इसके तहत जगह-जगह नए फीडर लगाए गए, बिजली वितरण केंद्र स्थापित किए गए। उससे जाहिर होता है कि ग्रामीण उपभोक्ता भी इस बार गर्मियों में बिजली के लिए ज्यादा परेशान नहीं होंगे। वैसे देखा जाए तो बिजली ही विकास के सर्वोच्च पैरामीटरों में से एक है, पब्लिक भी इसकी मौजूदगी से किसी सरकार के बारे में अपना मन बनाती है।

अब सवाल उठता है किस वर्ग को इस बजट से उम्मीद होगी? युवा, किसान तो सरकार की प्राथमिकताओं में है ही। लखनऊ, कानपुर और वाराणसी में मेट्रो, आगरा-लखनऊ ग्रीन एक्सप्रेस वे, लखनऊ-बलिया एक्सप्रेस वे योजनाएं हैं जिनका पूरे प्रदेश में असर हो सकता है। समाजवादी सरकार जानती है कि पिछले विधानसभा चुनावों में किसानों से भी ज्यादा युवाओं ने उसका साथ दिया था। उस समय सपा के पास बजट तो नहीं था, मगर उसने पिछली सरकार के प्रति पब्लिक की बेरुखी देख कर युवाओं के लिए कन्या विद्या धन के जवाब में मुफ्त लैपटॉप जैसी घोषणाएं की थी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते अखिलेश यादव ने भी प्रदेश में खूब चुनाव पूर्व तैयारी सभाएं की थीं। इस बार परिस्थितियां अलग हैं, नए वोटर युवाओं को रिझाने के लिए कोई न कोई प्रयास करना ही होगा। उन परियोजनाओं को पूरा करना होगा जिनका इस सरकार ने शिलान्यास किया है। ऐसी ही योजनाओं के बल पर चुनावी वैतरणी पार करने की तैयारी होगी।

[स्थानीय संपादकीय: उत्त्रर प्रदेश]