राजस्थान के दौरे पर गए राहुल गांधी ने विभिन्न मुद्दों की चर्चा करते हुए जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर जोरदार हमला बोला उससे इसकी आशंका और बढ़ गई है कि संसद के आगामी सत्र में शोरगुल ही होने वाला है। इसका आभास जम्मू में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कराया। उन्होंने इस कार्यक्रम में उपस्थित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की ओर संकेत करते हुए कहा कि अभी हम यहां मस्ती से बैठे हैं, लेकिन आगे देखिए कैसा मुकाबला होता है? हालांकि उन्होंने परिहास किया, लेकिन इससे इतना संकेत तो मिला ही कि सत्तापक्ष को भी यह भान है कि संसद का आगामी सत्र चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है।

राहुल गांधी ने जिस तरह एक बार फिर ललित मोदी प्रकरण के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण विधेयक और व्यापम घोटाले का मसला उठाया उससे यह तय हो गया कि कांग्रेस इन्हीं मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने वाली है। ललित मोदी प्रकरण में कुछ खास नहीं है और कांग्रेस को यह पता होना चाहिए कि अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को तूल देने से बच रहे हैं। जहां तक भूमि अधिग्रहण विधेयक की बात है तो फिलहाल ऐसा लगता नहीं कि इस सत्र में यह विधेयक आएगा। नि:संदेह मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला एक गंभीर मामला है और उसे लेकर संसद में सवाल-जवाब भी होंगे, लेकिन अब जब इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई है तब फिर इस मसले को लेकर संसद ठप करने से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है।

यह पहली बार नहीं है जब संसद सत्र करीब आते ही विपक्षी दल सरकार को घेरने की तैयारी करते दिख रहे हैं। ऐसा हमेशा होता है और विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर सरकार को घेरने में हर्ज भी नहीं, लेकिन इसके नाम पर संसद में कुछ काम ही न होने देने की रणनीति संसद की गरिमा और एक तरह से देश के भविष्य से खिलवाड़ है। संसद के सत्र गंभीर चर्चा के लिए होते हैं, समय बर्बाद करने के लिए नहीं। दुर्भाग्य से पिछले कुछ समय से संसद में कोई काम न होने देने को राजनीतिक सफलता के तौर पर देखा जाने लगा है। इस मामले में सारे दल करीब-करीब एक जैसे हैं। सत्ता में रहते समय वे विपक्ष के रवैये को लेकर उसे कोसते हैं, लेकिन विपक्षी दल के रूप में वैसा ही करते हैं।

हमारे राजनीतिक दलों को यह ज्यादा अच्छे से पता होना चाहिए कि किस तरह तमाम महत्वपूर्ण विधेयक तथाकथित आम असहमति के अभाव में अटके हैं। इनमें से कई विधेयक तो जरूरत से ज्यादा समय से लंबित हैं। बतौर उदाहरण जीएसटी विधेयक। यह विधेयक पिछले पांच वर्षो से राजनीतिक दलों में समन्वय की राह तक रहा है। यह मूलत: कांग्रेस की ओर से तैयार किया गया विधेयक है, लेकिन अब वही उसके विरोध पर आमादा है। विपक्षी दलों को यह समझना होगा कि उनका काम केवल संसद ठप करना नहीं है। नि:संदेह यह भी ठीक नहीं होगा कि सत्तापक्ष विपक्ष के असहयोग का उल्लेख कर कर्तव्य की इतिश्री कर ले। उसे इसके लिए हरसंभव उपाय करने होंगे कि संसद के आगामी सत्र में ज्यादा से ज्यादा विधायी कामकाज हो। अगर ऐसा नहीं होता तो सत्तापक्ष से ज्यादा नुकसान देश को होगा।

[मुख्य संपादकीय]