वन संपदा से समृद्ध उत्तराखंड में ईको सेंसटिव जोन का मुद्दा संवेदनशील बन गया है। उत्तरकाशी जिले के गोमुख क्षेत्र के ग्रामीण लगातार इसका विरोध कर रहे हैं, इसके साथ ही राज्य सरकार भी इस मामले पर उच्चतम न्यायालय की शरण लेने जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज विश्व में पर्यावरण का संरक्षण सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। ऐसे में सत्तर फीसद वन भूभाग वाला यह प्रदेश पर्यावरण बचाने में अहम भूमिका निभा रहा है। जाहिर है इस परंपरा को बनाए रखना न केवल सरकारों की जिम्मेदारी है बल्कि आम आदमी का भी दायित्व है। जीवन चक्र को बचाए रखने के लिए स्वच्छ आबो हवा जरूरी है तो पारिस्थितिकीय संतुलन भी। फिर सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि ईको सेंसटिव जोन के विरोध में आवाज जोर पकड़ती जा रही है।

दरअसल, सच्चाई यह है कि सरकारें विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कायम रखने में विफल साबित हुई हैं। अनियोजित विकास से सामाजिक ढांचा भी चरमराता नजर आ रहा है। राज्य के पहाड़ी इलाकों से पलायन की बढ़ती रफ्तार इस तस्वीर की हकीकत बयां करने के लिए काफी है। पहाड़ी जिलों में करीब तीन हजार गांव खाली हो चुके हैं। यानी ढाई लाख घरों पर ताले लग चुके हैं। दुनिया बेशक चांद तक की दूरी नापने के बाद मंगल पर पहुंचने के सपने देख रही हो, लेकिन प्रदेश के तकरीबन दो हजार गांव और चार हजार तोक में बिजली तक नहीं पहुंच पाई। ग्रामीण आज तक बिजली पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आलम यह है कि जल और जंगलों से समृद्ध राज्य अपने पानी का दोहन भी नहीं कर पा रहा है। इको सेंसिटिव जोन के कारण भागीरथी घाटी में निर्माणाधीन तीन बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं भैरोघाटी, पाला मनेरी व लोहारी नागपाला को पहले ही नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी स्थगित कर चुकी है।

अब भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में फंसी 13 अन्य परियोजनाओं के भविष्य पर भी तलवार लटक गई है। कभी सरप्लस उत्पादन करने वाला प्रदेश आज उधार की बिजली से काम चला रहा है। लंबे समय से राज्य पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में केंद्र से सहायता की मांग कर रहा है। इसी कड़ी में ग्रीन बोनस को लेकर कवायद की जा रही है, लेकिन यह कब परवान चढ़ेगी कहा नहीं जा सकता। दरअसल, यह नीति नियंताओं की जिम्मेदारी है कि पर्यावरण और विकास के बीच एक संतुलन बनाएं। ईको सेंसटिव जोन में आने वाले ग्रामीणों के सामने विकास का ऐसा खाका खींचा जाना चाहिए जिससे पर्यावरण प्रभावित न हो और उनके हितों की भी रक्षा हो सके।