राज्य सरकार ने हाई स्कूलों में भी ‘स्कूल चलें-चलायें अभियान’ को लेकर एक सराहनीय पहल की है। प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद बड़ी संख्या में बच्चे माध्यमिक शिक्षा के लिए नामांकन नहीं लेते। ये सभी बच्चे ड्राप आउट हो जाते हैं। ये चिंताजनक है। इन्हें स्कूल से जोड़ने के लिए राज्य में पहली बार अभियान चलाया जाएगा, लेकिन इसका सकारात्मक परिणाम तभी आएगा जब इसके लिए जिम्मेदार पदाधिकारी सही उद्देश्य के साथ आगे आएं। अभियान के नाम पर स्कूलों में खानापूर्ति न हो। कोई कागजी नामांकन न हो। राज्य स्तर पर भी कड़ी मानिटरिंग की जरूरत होगी।

राज्य में सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्राथमिक स्कूलों के लिए हर साल यह अभियान चलाया जाता है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल से बाहर रह जाते हैं। राज्य सरकार को इसपर भी चिंतन करने की जरूरत है कि ऐसा क्यों होता है? जब बच्चों का नामांकन हो जाता है तो उनका ठहराव भी सुनिश्चित होना चाहिए। इस तरह के अभियान में दोहराव भी अधिक होता है। पदाधिकारी और शिक्षक श्रेय लेने के लिए वैसे बच्चों का भी नामांकन ले लेते हैं जो दूसरे स्कूलों में पहले से नामांकित रहते हैं। जरूरत है इस फर्जीवाड़े को रोकने की। बेहतर होगा कि सरकार के स्तर से थर्ड पार्टी मानिटरिंग जैसे ठोस कदम भी उठाए जाएं।

हालांकि राज्य सरकार ने बच्चों के नामांकन को आधार से लिंक कर इस फर्जीवाड़े और दोहराव को खत्म करने में काफी हद तक सफलता हासिल की है। इससे प्राथमिक स्कूलों में लगभग ढाई लाख बच्चों की संख्या कम हो गई है। राज्य सरकार का दावा है कि आधार से लिंक होने से ही यह संख्या कम हुई, क्योंकि आधार के कारण फर्जीवाड़े और दोहराव पर रोक लगी। अब जरूरत शत-प्रतिशत बच्चों के नामांकन को आधार से जोड़ने की है ताकि इस तरह की कोई गुंजाइश न बचे।

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव ने प्राथमिक व माध्यमिक दोनों श्रेणी के स्कूलों में एक साथ 10 अप्रैल से यह अभियान शुरू करने को लेकर न केवल अधिकारियों की जवाबदेही तय कर दी है, बल्कि वे लगातार इसकी समीक्षा भी कर रही हैं।जरूरत इस बात की है राज्य सरकार की इस मुहिम में पदाधिकारियों के अलावा शिक्षक, विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य,जन प्रतिनिधि व अभिभावक भी अपनी भूमिका निभाएं।