पहाड़ में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के आंदोलन ने उस वक्त उग्र रूप धारण कर लिया जब ममता बनर्जी अपने मंत्रियों के पूरे कुनबे के साथ दार्जिलिंग में मौजूद थीं। चार दशक बाद बंगाल की किसी मुख्यमंत्री ने दार्जिलिंग में अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई थी। दार्जिलिंग के राजभवन में जहां बैठक चल रही थी, वहीं बाहर गोजमुमो समर्थक विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और देखते-देखते स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। उग्र गोजमुमो समर्थकों ने जगह-जगह सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने 12 सरकारी वाहनों में आग लगा दी, जिनमें पांच पुलिस जीप शामिल थीं।

कई सरकारी बसों में भी तोड़फोड़ की गई। गोजमुमो समर्थकों ने पुलिस पर जमकर पथराव किया जिनमें उत्तर बंगाल के डीआइजी समेत 50 पुलिस कर्मी जख्मी हो गए। हालात बिगड़ते देख सेना की मदद लेनी पड़ी।पहाड़ में गोजमुमो का आंदोलन शिक्षा संस्थानों में बांग्ला भाषा को जबरन अनिवार्य करने के विरोध में शुरू हुआ था लेकिन इसके मूल में मिरिक नगरपालिका पर तृणमूल कांग्रेस का राजनीतिक कब्जा माना जा रहा है। गोजमुमो को पहाड़ में अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है।

पहाड़ की सुलगती आग जल्द बुङोगी ऐसा नहीं लगता। मुख्यमंत्री ने कहा है कि कानून हाथ में लेने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होगी। वहीं गोजमुमो प्रमुख विमल गुरुंग ने कहा है कि ममता जब पहाड़ में आती है तो विभेद पैदा करती हैं। गुरंग ने धमकी दी है कि वह भाषा के नाम पर कोई समझौता नहीं करेंगे। भाषा के नाम पर ही पाकिस्तान से टूट कर बांग्लादेश बना, लेकिन पहाड़ में भाषा अब कोई मुद्दा नहीं है। इसलिए कि मुख्यमंत्री ने बांग्ला अनिवार्य करने की बात कहने से इन्कार किया है। ऐच्छिक भाषा के तौर पर पहाड़ के छात्र बांग्ला पढ़ सकते हैं। विमल गुरुंग की बात में कहीं न कहीं अलग गोरखालैंड की चिंगारी भी छिपी है जो कभी भी धधक सकती है। मुख्यमंत्री को स्थिति की गंभीरता को देखते हुए धैर्य से काम लेना चाहिए। उन्हें खयाल रखना चाहिए कि पहाड़ में गोरखा टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन(जीटीए) का भी अस्तित्व है। पहाड़ में शांति के लिए बातचीत से समस्या का समाधान करना चाहिए और इसमें जीटीए की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। विपक्षी दलों ने इसके लिए सरकारी रवैए को ही जिम्मेदार ठहराया है। इसलिए जरूरत पड़े तो सरकार को पहाड़ के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक भी बुलानी चाहिए। बल प्रयोग करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। 

(स्थानीय संपादकीय पश्चिम बंगाल)