कश्मीर में सीआरपीएफ जवान के साथ बदसलूकी को बयान करने वाले वीडियो के वायरल होने के बाद देश भर में आम लोगों में गुस्से की लहर स्वाभाविक है। यह अच्छा हुआ कि आम लोगों के आक्रोश और क्षोभ को क्रिकेटर गौतम गंभीर और वीरेंद्र सहवाग ने भी अपनी तरह से तीखे रूप में अभिव्यक्त किया। इस वीडियो को देखकर कोई भी विचलित हो सकता है। केवल वही अविचलित रह सकते हैं जिन्हें सुरक्षा बल के जवानों के मान-सम्मान की परवाह न हो। इस वीडियो ने एक ओर जहां यह दिखाया कि गुमराह कश्मीरी युवक किस हद तक दुस्साहसी हो चुके हैं वहीं यह भी रेखांकित किया कि हमारे जवान अपमान का घूंट पीते हुए किन विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। विडंबना यह है कि इस सबके बावजूद अदालतों से लेकर राजनीतिक दलों की ओर से उन्हें ही संयम की सीख दी जाती है। कुछ राजनीतिक दल तो उपद्रवी तत्वों की खुली हिमायत करते दिखते हैं। चंद दिनों पहले ही नेशनल कांफ्रेंस के नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला पत्थरबाजों की तरफदारी करने में लगे हुए थे। राजनीतिक दलों की भारी भीड़ में से शायद ही कोई नेता ऐसा रहा हो जिसने फारुख अब्दुल्ला को लताड़ लगाई हो। क्या यह लज्जाजनक नहीं कि हमारा अधिकांश राजनीतिक नेतृत्व कानून एवं व्यवस्था के साथ-साथ सैनिकों के मान-सम्मान से खेल रहे उपद्रवी तत्वों को कोई हिदायत देने की जरूरत समझने के बजाय ऐसे तत्वों को चेताने वाले सेनाध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार रहता है? क्या इससे अधिक दयनीय एवं दुखद और कुछ हो सकता है कि संसद में पैलेट गन पर तो हंगामा खड़ा किया जाता है, लेकिन कश्मीर घाटी में धंधा बन गई पत्थरबाजी पर मौन साधे रहने में ही भलाई समझी जाती है?
बेहद अपमानजनक बदसलूकी से दो-चार हुए अपने जवान के वीडियो पर सीआरपीएफ अधिकारियों के इस कथन पर हमारे नीति-नियंताओं की आंखें खुल जाएं तो बेहतर कि यही हकीकत है और हमारे जवान आए दिन ऐसी ही स्थितियों का सामना करते हैं। सीआरपीएफ अधिकारियों के इस कथन पर हैरत नहीं, क्योंकि कश्मीर घाटी से रह-रह कर ऐसे वीडियो सामने आते रहते हैं जो यह बताते-दिखाते हैं कि हमारे जवान और सैनिक जोखिम के साथ ही जलालत का सामना करने को भी मजबूर हैं। नि:संदेह सैनिकों को विषम परिस्थितियों का सामना करना आना चाहिए, लेकिन संयम की भी एक सीमा होती है। यदि कश्मीर घाटी में तैनात जवानों को हर हाल में धैर्य धारण करने का उपदेश दिया जाता रहा और इसकी अनदेखी की जाती रही कि भारत विरोधी तत्वों का दुस्साहस किस तरह अपनी हदें पार कर गया है तो फिर सेना और सुरक्षा बलों का इकबाल खत्म होने में देर नहीं लगेगी। सेना एवं सुरक्षा बलों की प्रतिष्ठा बनाए रखकर ही उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझने लायक बनाए रखा जा सकता है। अच्छा होगा कि कश्मीर के गंभीर होते हालात को लेकर भारत सरकार चेते। कश्मीर घाटी में सक्रिय जिहादियों और पाकिस्तान परस्त तत्वों को महज नाराज कश्मीरियों के तौर पर देखा जाना एक तरह से जानबूझकर सच्चाई से मुंह मोड़ना है। समय आ गया है कि सच का सामना किया जाए और वह भी पूरी दृढ़ता के साथ।

[ मुख्य संपादकीय ]