नया शिक्षा सत्र शुरू होने पर छात्र-छात्राओं के नई कक्षाओं में प्रवेश के दौरान शुल्क वृद्धि को लेकर अभिभावकों का गुस्सा एकाएक फूट पड़ा। महानगर समेत राजारहाट न्यू टाउन और कई प्रतिष्ठित निजी स्कूलों के समक्ष अभिभावकों ने सोमवार को सड़कर पर उतर कर विरोध किया और जुलूस भी निकाला। दरअसल, निजी स्कूलों में शुल्क वृद्धि को लेकर अभिभावकों का आक्रोश फूट कर सामने आना स्वभाविक है। निजी स्कूलों में मनमाने ढंग से छात्रों से शुल्क वसूलने की शिकायत कोई नई बात नही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब निजी अस्पतालों के मनमाने शुल्क वसूलने पर रोक लगाने के लिए फरवरी में नया कानून बनाया तो उसी समय घोषणा की थी कि निजी स्कूलों के मनमाने शुल्क वसूलने पर रोक लगाने के लिए कानूनी कदम उठाया जाएगा, लेकिन निजी अस्पतालों को नियंत्रित करने के लिए जो नया कानून बना उसकी कई स्तर पर तीखी आलोचना हुई। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी निजी अस्पतालों पर नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा बनाए नए कानून का विरोध किया। कहने का तात्पर्य यह कि निजी अस्पतालों को नियंत्रित करने के लिए नए कानून की कुछ स्तर पर आलोचना होने के बाद सरकार निजी स्कूलों को नियंत्रित करने से पीछे हट गई। मुख्यमंत्री ने बाद में स्पष्ट किया कि निजी स्कूलों को नियंत्रित करने के लिए सरकार कोई नया कानून नहीं बनाएगी। इसके लिए वर्तमान कानून के तहत सरकार निजी स्कूलों और बड़े निजी शिक्षण संस्थानों को नियंत्रित करेगी। यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वेस्ट बंगाल राइट आफ चिल्ड्रेन टू फ्री एंड कंप्लसरी एजूकेशन रूल्स के तहत निजी स्कूल छात्रों से मनमाना शुल्क नहीं वसूल सकते। इस कानून की धारा 19 में स्पष्ट कहा गया है कि सरकार से अनुमति लिए बिना कोई भी निजी स्कूल शुल्क नहीं बढ़ा सकता है। इसमें कोई त्रुटि पाए जाने पर सरकार को संबंधित स्कूल की मान्यता रद करने का अधिकार है। आखिर जब निजी स्कूलों को नियंत्रित करने के लिए कानून है तो उसे कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। सरकार दोनों पक्षों के हित को ध्यान में रख कर खुद शुल्क की दर निर्धारित कर सकती है। इस मुद्दे पर सरकार के मौन रहने पर ही अभिभावकों को सड़क पर उतरना पड़ा। उम्मीद की जानी चाहिए कि अभिभावकों के आक्रोश को देखते हुए सरकार निजी स्कूलों के मनमाने शुल्क वसूलने से रोकने की दिशा में कदम उठाएगी।
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(हाईलाइटर:::कहने का तात्पर्य यह कि निजी अस्पतालों को नियंत्रित करने के लिए नए कानून की कुछ स्तर पर आलोचना होने के बाद सरकार निजी स्कूलों को नियंत्रित करने से पीछे हट गई।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]