हाईलाइटर...
प्रश्न यह उठता है कि क्या महज ओपीडी चलाने के लिए इनपर 150 करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि खर्च की गई? आखिर मरीजों को इन दोनों अस्पतालों में पूरा इलाज क्यों नहीं मिल पा रहा है?
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राजधानी में दो सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों को उपयोग में नहीं लाए जाने पर हाई कोर्ट का नाराजगी जताना जायज है। साथ ही उसका यह सवाल भी लाजमी है कि क्या सरकार चाहती है कि लोग निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हों। उस समय, जबकि राजधानी के तमाम सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का भारी दबाव है, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनकर तैयार हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। यह सरकारी उदासीनता की पराकाष्ठा ही है कि आठ साल पहले बने इन दोनों अस्पतालों में इतने लंबे अर्से में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हो पाई है और डॉक्टरों के अनेक अन्य पद भी रिक्त हैं। दिल्ली सरकार का दावा है कि इन अस्पतालों में ओपीडी बहुत च्च्छे से काम कर रही है, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या महज ओपीडी चलाने के लिए इनपर 150 करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि खर्च की गई? आखिर मरीजों को इन दोनों अस्पतालों में पूरा इलाज क्यों नहीं मिल पा रहा है? इतनी भारी-भरकम धनराशि खर्च करने के बाद इन अस्पतालों को उपेक्षित छोड़ दिया जाना कहां तक उचित है?
बेहतर इलाज की उम्मीद में देश के दूरदराज के इलाकों से लोग दिल्ली के अस्पतालों का रुख करते हैं, इससे यहां मरीजों का दबाव बढ़ता है और सुविधाएं कम पड़ जाती हैं। ऐसे में राजधानी में सरकारी स्तर पर नए-नए अस्पताल बनाए जाने चाहिए, ताकि गुणवत्ता वाले इलाज की उम्मीद में यहां आए मरीजों के साथ-साथ दिल्ली के लोगों को भी बेहतर उपचार मुहैया कराया जा सके। ऐसे में आठ साल से बनकर तैयार दोनों सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में तत्काल सभी सुविधाएं उपलब्ध कराकर इनका अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही इस बात की भी पड़ताल की जानी चाहिए कि आखिर अब तक इन अस्पतालों में सुविधाओं और विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति क्यों नहीं हो पाई? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? यही नहीं, सरकार को नए बने सभी अस्पतालों की पड़ताल करनी चाहिए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनका पूरा इस्तेमाल हो पा रहा है या नहीं। जिन अस्पतालों में चिकित्सकों, कर्मचारियों या सुविधाओं की कमी है, उसे तत्काल दूर किया जाना चाहिए। इससे न सिर्फ मरीजों को उपचार के बेहतर विकल्प मुहैया कराए जा सकते हैं, बल्कि मौजूदा अस्पतालों से मरीजों का बोझ कम करने में भी मदद मिलेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]