राजधानी लखनऊ में चौक कोतवाली के करीब एक सराफा दुकान से ४० किलो सोना और करीब सवा करोड़ की नकदी लूट लेने की घटना से साफ है कि अपराधियों ने बेखौफ होकर वारदात को अंजाम दिया। उन्होंने पीछा करने पर सराफा कारोबारी पिता-पुत्र को बुरी तरह पीटकर मरणासन्न भी कर दिया। लुटेरे शायद पूरी तरह आश्वस्त थे कि पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी। यही बात गायत्री प्रजापति के मामले में देखने को मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर एफआइआर होने के बाद भी मंत्री महोदय अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार और रैलियां करते रहे और पुलिस हाथ पर हाथ धरे उनके फरार होने का इंतजार करती रही। यही किस्सा कानपुर में अवैध इमारत ढहने की घटना में भी दोहराया जा रहा है। दस से अधिक मासूम लोगों की जान लेने वाली इस दुखद घटना के लिए जिम्मेदार लोग पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। हाईवे के लुटेरे ट्रकों का माल लूटकर न जाने किस बिल में छिप जाते हैं कि पुलिस उनका सुराग नहीं ढूंढ पाती। दरअसल हाल के कुछ वर्षो में उत्तर प्रदेश में गंभीर अपराधों में बड़ी वृद्धि हुई है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं। प्रदेश सरकार ने हालांकि इस दौरान पुलिस का काफी आधुनिकीकरण किया है लेकिन, वारदात के बाद पुलिस के हाथ अपराधियों तक आसानी से नहीं पहुंच पाते हैं। दरअसल मूल समस्या यह है कि अपराधियों में पुलिस का खौफ एकदम खत्म हो गया। इधर कुछ सालों में पुलिस पर हमले भी बढ़े हैं। छुटभैये अपराधी भी पुलिस पर हाथ छोड़ने से गुरेज नहीं करते। ज्यादातर मामलों में पुलिस पर हमला करने वाले साफ बच निकले। ऐसे तत्वों को कहीं न कहीं से संरक्षण मिल गया। एक दौर ऐसा भी था बड़े-बड़े अपराधियों की उप्र पुलिस का नाम सुनकर रूह फना हो जाती थी। फूलन देवी समेत अनेक नामी डकैतों ने मध्य प्रदेश जाकर आत्मसमर्पण सिर्फ इसलिए ही किया था कि उन्हें भय था कि उप्र पुलिस के हत्थे चढ़ने पर उनकी खैर नहीं है। अब समय आ गया है कि उप्र पुलिस का इकबाल फिर से बुलंद किया जाये। एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी का यह बयान उम्मीद बढ़ाने वाला है कि उप्र पुलिस चाहे तो गायत्री प्रजापति को एक दिन में गिरफ्तार कर सकती है। उम्मीद है कि नई सरकार पदारूढ़ होते ही पुलिस का इकबाल बुलंद करने के साथ ही अपराधियों पर नकेल भी कसेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]