लखीसराय की दुष्कर्म पीडि़त नाबालिग किशोरी के साथ पीएमसीएच में जो बर्ताव हुआ, उससे एक बार फिर राज्य के इस सबसे बड़े एवं प्रतिष्ठित अस्पताल का संवेदनशून्य चेहरा उजागर हुआ। दुष्कर्मियों की दङ्क्षरदगी का शिकार बुरी तरह घायल किशोरी बारह घंटे अस्पताल के फर्श पर पड़ी बिना इलाज मौत से जूझती रही। उसका इलाज शुरू करने के लिए डॉक्टर बेड खाली होने का इंतजार करते रहे। जब मीडिया ने यह मुद्दा उठाया, तब पीडि़त किशोरी को बेड और इलाज नसीब हुआ। यह डरावनी कार्यशैली उसी डॉक्टर बिरादरी की है जो किसी प्रभावशाली नेता का इलाज करने पूरे लाव-लश्कर के साथ उसके बेडरूम को आइसीयू में तब्दील कर देती है। दरअसल, राज्य की चिकित्सा सेवा पूरी तरह पटरी से उतरी हुई है। कभी जूनियर डॉक्टर मरीजों और उनके तीमारदारों के साथ मारपीट करते हैं तो अक्सर अस्पताल की दवाएं बाहर निजी मेडिकल स्टोरों पर बिकती पकड़ी जाती हैं। जिस वक्त मरीज ओपीडी में डॉक्टर का इंतजार कर रहे होते हैं, उस वक्त डॉक्टर साहब किसी प्राइवेट अस्पताल में ड्यूटी कर रहे होते हैं। हाल में ही पटना में नकली दवाओं के बड़े कारोबार का पर्दाफाश हुआ, इसमें भी पीएमसीएच के अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका सामने आई है। जाहिर है कि अस्पताल का प्रबंधन कुव्यवस्था की चपेट में है। ऐसे में लखीसराय की दुष्कर्म पीडि़ता के साथ डॉक्टरों ने जो बर्ताव किया, वह स्वाभाविक है। बहरहाल, राज्य सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। चिकित्सा हर नागरिक, खासकर साधनहीन मरीजों का बुनियादी अधिकार है। सरकार इसी नजरिए से राजकीय चिकित्सालयों में निशुल्क चिकित्सा का इंतजाम करती है लेकिन जिन पर इसे अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी है, वे अक्सर इसमें पलीता लगा देते हैं। लखीसराय की सामूहिक दुष्कर्म पीडि़त किशोरी बेहद जटिल हालत में पीएमसीएच लाई गई थी। उसके शरीर पर गंभीर चोटें हैं। इस हालत में किसी राह चलते व्यक्ति को भी इस लड़की से हमदर्दी हो जाती लेकिन मानवता की सेवा करने की शपथ लेकर चिकित्सा व्यवसाय शुरू करने वाले डॉक्टर इसकी हालत पर नहीं पसीजे। यह कितना हृदय विदारक है कि जख्मों की पीड़ा से कराहती लड़की 12 घंटे फर्श पर पड़ी इलाज का इंतजार करती रही। सरकार से अपेक्षा है कि इसके लिए जो भी दोषी है, उसे चिन्हित करके कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई डॉक्टर किसी लाचार के साथ ऐसा बर्ताव करने की हिम्मत न करे।
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सरकारी चिकित्सा व्यवस्था का मुख्य मकसद साधनहीन और लाचार मरीजों को इलाज मुहैया कराना है लेकिन जब मौत से जूझ रही कोई सामूहिक दुष्कर्म पीडि़त किशोरी पीएमसीएच जैसे अस्पताल में फर्श पर पड़ी 12 घंटे इलाज को तरसती है तो सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की असलियत सामने आ जाती है।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]