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ब्लर्ब में
प्रदेश में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां वन स्वीकृति के फेर में विकास कार्य लटके हैं। लोगों को वह सुविधा नहीं मिली, जो पहले ही मिल जानी चाहिए थी।
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विकास के पथ पर हिमाचल अग्र्रसर है और निरंतर इसके लिए प्रयास किए जाते रहे हैं व धरातल पर प्रयास होते रहे हैं। लेकिन कतिपय कारणों से गति अवरुद्ध हो जाती है। इसका बड़ा कारण यह है कि कई बार लोग विकास में बाधा बनते हैं तो कई बार सरकारी भूमि पर वन स्वीकृति नहीं मिल पाती। सबसे ज्यादा प्रभावित पंचायतों में चलने वाले कार्य होते हैं, जिनके लिए वन स्वीकृति दिलाने के लिए कोई एजेंसी ही तय नहीं की गई है। इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है और कई साल के इंतजार के बाद भी सुविधाओं की राह देखते रह जाते हैं। प्रदेश में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां वन स्वीकृति न मिलने के कारण विकास कार्य पूरे नहीं हो पाए और लोगों को वह सुविधा नहीं मिल पाई, जो उन्हें पहले मिल जानी चाहिए थी। मामला चाहे पुलों का हो या सड़कों का या अन्य भवनों के निर्माण का। प्रदेश सरकार की यह पहल अवश्य ही पंचायतों में विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी, जिसमें खंड विकास अधिकारी को वन स्वीकृति दिलाने के लिए एजेंसी बनाया गया है। अब पंचायतों के वन भूमि पर स्कूल, सड़क, सामुदायिक भवन या पुल जैसे 13 तरह के विकास कार्यों के लिए ग्र्रामसभा प्रस्ताव पारित कर खंड विकास अधिकारी को भेजेगी, जो इसे एसडीएम की अध्यक्षता में गठित उपमंडलीय कमेटी को सौंपेंगे। इसके बाद उपायुक्त की अध्यक्षता में जिला कमेटी फैसला करेगी कि स्वीकृति देनी है या नहीं। एक हेक्टेयर तक भूमि के विकास कार्यों के लिए राज्य या केंद्रीय वन समिति की स्वीकृति नहीं लेनी होगी। इस फैसले की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही थी क्योंकि पंचायतों में निजी भूमि के अलावा जो खाली भूमि है, वह वन भूमि है। पंचायतों में विकास की गति निरंतर बनाए रखने के लिए ऐसे फैसले की जरूरत पहले ही महसूस की जा रही थी। देर से ही सही सरकार ने अच्छा कदम उठाया है, जिसके सकारात्मक परिणाम जल्द सामने आएंगे। अब पंचायतों में विकास योजनाओं में होने वाली अनावश्यक देरी से बचा जा सकता है और सुविधाओं के अभाव में लोगों को नहीं जीना पड़ेगा। एक पहलू यह भी है कि लोगों को भी विकास में सहभागी बनना होगा और अगर उनकी थोड़ी जमीन से किसी गांव को सड़क, रास्ता, पुल या सामुदायिक भवन की सौगात मिलती है तो उसमें बाधा न बनें।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]