प्रदेश में बाढ़ की विभीषिका विकराल होती जा रही है। हजारों गांव बाढ़ के पानी से घिरे हैं। लाखों लोगों को बसी-बसाई गृहस्थी उजाड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ा है। हालांकि शासन-प्रशासन लगातार बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों पर सतर्क निगाह रखने और भरपूर राहत का दावा कर रहा है। कई मंत्री बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई दौरा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद भी बाढ़ग्रस्त विभिन्न जिलों का हवाई दौरा कर रहे हैं। शुRवार को भी दौरे के बाद उन्होंने सिद्धार्थनगर में कहा कि आपदा ने कई वषों का रिकॉर्ड तोड़ा है। दावा किया कि बाढ़ प्रभावित किसी भी परिवार को भूखे नहीं रहने दिया जाएगा। खाद्यान्न, पेयजल और अन्य जरूरी सामान की कमी नहीं होने देंगे। उन्होंने अफसरों को हर पल राहत कार्य मुस्तैदी से करने की हिदायत दी है। केंद्र सरकार का भी दावा है कि वह भी संसाधनों की कमी नहीं होने देगी। तराई के जिलों को हर साल कम या ज्यादा इस तरह की विभीषिका से जूझना पड़ता है। तमाम लोगों की जान तो जाती ही है, घर, खेत-खलिहान, फसल, रोजगार सबकुछ चौपट हो जाता है। रही-सही कसर बाढ़ के बाद फैली महामारी पूरी कर देती है। पूरे साल भर आर्थिक नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। इंफ्रास्ट्रर के चौपट हो जाने से सरकारी खजाना खाली होता है, जो अलग से। सबको पता है कि सीमावर्ती जिलों में यह सारी तबाही नेपाल की नदियों से होती है। हर साल तबाही के बाद सरकारी स्तर पर इरादे जताए जाते हैं कि नेपाल के साथ द्विराष्ट्रीय संवाद कर समस्या का समाधान खोजा जाएगा लेकिन, मामला ढाक के तीन पात तक ही सीमित हो जाता है। नदियों को जोड़ने की योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है, जिसके कारण अतिरिक्त पानी का प्रबंधन नहीं हो पाने से वह तबाही का कारण बन रहा है। फिलहाल एक बार फिर संकट सामने है और संकट के स्थायी समाधान के लिए वादे-इरादे भी जाहिर किए जा रहे हैं, पर देखना यही है कि फिलहाल वर्तमान स्थिति में प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने में केंद्र और प्रदेश की सरकार कितनी प्रभावी साबित होती है। वस्तुत: यह वक्त आपदा प्रबंधन के समस्त कौशल की परीक्षा है। इसके बाद संकट के स्थायी समाधान का प्रयास क्या होगा यह भी देखने वाली बात होगी क्योंकि यह प्रदेश के विकास की राह का सबसे बड़ा रोड़ा भी है।

स्थानीय संपादकीय- उत्तर प्रदेश