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मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा की शुरूआत अप्रैल से होनी थी लेकिन अभी इसके लिए बीमा कंपनी का चयन होना बाकी है और मामला लटका हुआ है।
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लाख प्रयास के बावजूद राज्य में कल्याणकारी योजनाओं को धरातल पर उतारने में उदासीनता बरती जा रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना बंद हो चुकी है। इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का इलाज संभव हो पाता था। इसके विकल्प के तौर पर मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा की शुरूआत अप्रैल से प्रस्तावित थी। अभी इस योजना को राज्य मंत्रिपरिषद की दोबारा स्वीकृति लेनी है वहीं इसके लिए बीमा कंपनियों का भी चयन होना बाकी है। पिछले वर्ष जून माह में कैबिनेट की स्वीकृति के बाद इसमें कुछ संशोधन प्रस्तावित है। लिहाजा इसे फिर से राज्य मंत्रिपरिषद की स्वीकृति की आवश्यकता होगी। उधर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की जगह नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम इस साल अप्रैल माह से लागू करने का निर्णय लिया है। इसमें अब लोगों का तीस हजार की बजाय एक लाख रुपये का बीमा कराने का प्रावधान किया गया है।
हालांकि राज्य में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना सितंबर 2015 से ही बंद है। केंद्र के निर्देश पर इस योजना को श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग से स्वास्थ्य विभाग में हस्तांतरित करने में देरी हुई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में तीस रुपये के प्रीमियम का भुगतान करने पर परिवार के पांच सदस्यों को तीस हजार रुपये तक का इलाज सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त होता था। इसका लाभ बीपीएल परिवारों, मनरेगा कर्मी, भवन निर्माण मजदूर, घरेलू कामगार, बीड़ी मजदूर, सफाई कर्मी, रेलवे कुली, रिक्शा चालक, ऑटो रिक्शा चालक, कचरा चुनने वाले आदि को मिलता था। नई समेकित बीमा योजना में बीमा कराने वाले परिवार के मुखिया सहित उसके पांच सदस्यों को सामान्य बीमारी की स्थिति में 50 हजार रुपये तथा गंभीर बीमारी की स्थिति में दो लाख रुपये का मुफ्त इलाज अस्पतालों में करने का प्रावधान है। इसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लाभुकों के मामलों में सामान्य बीमारियों के बीमा में पचास हजार में तीस हजार रुपये तथा वरिष्ठ नागरिकों के अतिरिक्त तीस हजार के बीमा के लिए आनेवाले प्रीमियम में 60 फीसद का भुगतान केंद्र सरकार वहन करेगी। बहरहाल स्वास्थ्य योजनाओं में देरी का खामियाजा उस तबके को उठाना पड़ेगा जो इन सुविधाओं के लिए सरकारी योजनाओं पर आश्रित रहते हैं। राज्य में पूर्व के मुकाबले स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई हैं लेकिन इस क्षेत्र में चुनौतियां काफी हैं। सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, चिकित्सकों की कमी समेत ऐसे कई मोर्चे हैं जहां राज्य सरकार को जूझना पड़ेगा। आवश्यकता इस बात की है कि स्वास्थ्य योजनाओं पर पदाधिकारी गंभीरता से अमल करें, तभी कल्याणकारी शासन की अवधारणा को धरातल पर उतारा जा सकेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]