स्मार्ट सिटी की बनने की कतार में खड़ा दून के फिसड्डी साबित होते ही सियासी जमात में जुबानी जंग तेज हो गई है। कांग्रेस ने इसे केंद्र की उपेक्षा करार दिया तो भाजपा ने प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए स्मार्ट सिटी के प्रस्ताव पर सवाल उठाए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राजनीतिक कौशल का परिचय देते हुए दूसरे चरण से उम्मीद जताई और कहा कि प्रधानमंत्री टीम इंडिया के अपने सहयोगी राज्य को नजर अंदाज नहीं करेंगे। सियासत में आरोप-प्रत्यारोपों का दौर न तो गलत है और न ही नया, लेकिन जरूरत इस बात की है कि उन कारकों पर गंभीरता से मनन किया जाए ताकि अगले चरण में सफलता हासिल हो सके। सरकार के नीति नियंताओं और योजनाकारों के लिए यह शर्मनाक ही कहा जाएगा कि प्रतिस्पर्धा में शामिल 97 शहरों में आखिरी नगर देहरादून ही है। यह हाल तब है जबकि बुद्धिजीवी, विशेषज्ञ और आम नागरिक आरंभ से ही इस पक्ष में थे कि मौजूदा शहर को ही बेहतर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। पहले चरण में चुने गए बीस शहरों की स्थिति देखें तो साफ हो जाता है कि सूची में उन्हीं को तवज्जो दी गई, जिन्होंने खुद को संवारने की योजना बनाई। इन बीस शहरों में 18 ने रेट्रोफिटिंग (पुनसरुधार), एक ने रिडेवलपमेंट (पुनर्विकास)और एक ने रेट्रोफिटिंग और रिडेवलपमेंट दोनों का चयन किया। वहीं ग्रीन फील्ड (नया शहर) का चुनाव करने वाले 15 शहर दौड़ से बाहर हो गए। दून भी इन्हीं में से एक है। दून में नया शहर बसाने के लिए जिस चाय बागान का चुनाव किया गया, उसे लेकर विरोध के स्वर पहले से ही मुखर थे। पर्यावरणविदें के साथ ही आम शहरी का मानना है कि दून के फेफड़े माने जाने वाली हरित पट्टी को कंक्रीट के जंगल में तब्दील करना बुद्धिमानी नहीं है। फिर सवाल मूल शहर का है। दस लाख की आबादी वाले दून की स्थिति संवारने के लिए जिम्मेदार लोगों के पास किसी तरह की कोई योजना नजर नहीं आती। शहर के भविष्य को लेकर जुबानी चिंताएं जाहिर करने वालों की कमी नहीं, लेकिन चिंतन का अभाव साफ नजर आता है। राजनेताओं की शह पर हो रहा अतिक्रमण, बिल्डरों के चंगुल में फंसता शहर और सीवरेज व ड्रेनेज का चोक होता सिस्टम दून के लिए किसी दंश से कम नहीं है। स्वयं मुख्यमंत्री ने रायपुर में आयोजित चौपाल में कहा था कि ‘बस, बहुत हो चुका अब तो दून को बख्स दीजिए।’ परिस्थितियों की गंभीरता को समझने के लिए मुख्यमंत्री का यह वाक्य की पर्याप्त है। अब भी समय है दूसरे चरण के लिए बेहतर तैयारी के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। बीती ताहि से सबक ले आगे की सुध लेने में कोई बुराई नहीं है।

(स्थानीय संपादकीय, उत्तराखंड)